शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

हरित क्रान्ति और हरियाणा का विकास


आजादी के बाद के कुछ सालों में लोगों की उम्मीदें जगी थी वे किसी हद तक पूरी होने भी लगी थी। एक उदाहरण से यह बात षायद ओर अधिक स्पश्ट हो पाये। रोहतक के नजदीक ही शिमली  गांव है। वहां आज से 40- 45 साल पहले पहला टी वी लगा था बाहर खेतों में बसने वाले परिवार में। गांव में कोई टी वी नहीं था तो शाम को 20- बुजुर्ग एक डेढ़ किलो मीटर  पैदल चलकर उस बाहरी मकान में खबरें सुनने के लिए आते थे। दूसरा उदाहरण है कि पिछले कुछ साल पहले भालोट गांव के स्कूल का रिज्ल्ट काफी खराब था। तो गांव वालों ने सरपंच की रहनुमाई में गांव के स्कूल को ताला लगा दिया। एक दिन सरपंच से बात हुई तो उसने कहा कि ये बाहर से पंजाबी  मास्टर  आते हैं। वे इसलिए गांव के बच्चों को नहीं पढ़ाते कि कभी ये बच्चे उनके बच्चों  के साथ नौकरियों में कम्पीटीशन  में न आ जाएं। उनसे कहा गया कि रुड़की गांव में तो एक बी शहरी टीचर नहीं है फिर वहां का रिज्ल्ट खराब क्यों आया? जवाब था कि वहां श हर की मास्टरनी हें कई वे स्वैटर बुनती रहती हैं बच्चों को नहीं पढ़ाती। यह पूरी सच्चाई नहीं है ।शिक्षा के क्षेत्र पर जयादा गम्भीरता से बात करने की जरूरत है ।  आज ज्यादातर घरों में वहीं पर टी वी है। मोबइल फोन का चलन काफी बढ़ा है । मॉल कल्चर ने पैर पसारने शुरू किये हैं । हरित क्रान्ति आई हरियाणा में बहुत से बदलाव अपने साथ लेकर आई। इसके समर्थक इसके गुणगान करते नहीं थकते थे। नये बीज आये, नये खाद आये, फसलों के पैटरर्न में बदलाव आये। सड़कों का विस्तार हुआ। दो पहिये और चार पहिये के वाहनों का आवागमन बढ़ा। प्रति एकड़ पैदावार में भी बढ़ोतरी हुई। और किसानी के एक हिस्से को काफी फायदा भी हुआ। किसानी का मध्यम स्तर का हिस्सा कुछ लाभान्वित हुआ और काफी महत्वपूर्ण भाग को हरित क्रान्ति ने गरीबी की तरफ भी धकेला। साथ ही हरियाणा के स्वास्थ्य पर भी गहरे असर पड़े हैं। कीटनाशकों के अन्धाधुन्ध प्रयोग ने जमीन, पशुओं व मनुष्यों  की सेहत पर गल्त प्रभाव  डाले हैं जो अपने आप में खोज का बड़ा क्षेत्र है। क्योंकि जाट बहुल्य प्रदेश  है हरियाणा इसलिए राजनिति में भी इसका दबदबा बढ़ा है। इसका मतलब यह नहीं कि हरित क्रान्ति ने रोड़, अहिर आदि खेती करने वाली जातियों को प्रभावित नहीं किया। हां यह अलग बात है कि दक्षिण हरियाणा में हरित क्रान्ति की पहुंच बहुत धीमी और अप्रयाप्त रही। असर वहां भी कमोबेस इसी प्र्रकार के देखे जा सकते हैं। रोहतक में पहले गांव से चलकर लोग प्रेमनगर में बसना शुरु हुए और आहिस्ता आहिस्ता दूसरे हिस्सें में भी पैर पसारे। आाज यदि सैक्टर 3 और 2 व 14 में घूमकर देखा जाए तो हरित क्रान्ति के प्रभाव साफ नजर आ जाते हैं। भरत कालोनी और बाकी सैक्टरों का सर्वे किया जाए तो कोई ताज्जुब की बात नहीं कि हर तीसरे घर का लड़का या लड़की किसी दूसरे देश  में पढ़ाई करने या नौकरी करने न गये हुए हों। इसके चलते जहां एक तरफ खाप पंचायतों का पुर्नुथानवादी एजेंडा फिर से उभर कर आया है वहीं एक ज्यादा जनतांन्त्रिक जीवन शैली के विकसित होने की सम्भावनाएं भी बढ़ी हैं। गांव में आपसी भाईचारा काफी विखंडित हुआ है। ठेकेदारों की एक पूरी  जमात पिछले दौर में गांव और शहर के स्तर पर यहां पैदा हुई हैै। अंतरजातिय  तनाव बढ़े हैं क्योंकि कमजोर तबकों और महिलाओं का असरसन बढ़ा है। पुरानी सोच के लोगों को न तो महिलाओं का आगे आना अच्छा लग रहा है और न ही दलितों के एक हिस्से का बराबरी का एहसास उन्हें स्वीकार्य है।
निराशा  का माहौल धीमे धीमे बनता गया। देख की आजादी के वक्त पैदा हुई उम्मीदें एक हिस्से की तो पूरी हुई मगर बड़ा हिस्सा आज फिर एक बार संकट में हैं। इस संकट का सही सही आकलन ही हमें सही रास्ते की तरफ ले जा सकता है।
हरित क्रान्ति के क्या दुष्प्रभाव  सामने आये? अब हरियाणा में कृषि  क्षेत्र को कैसे सम्भाला जाए यह अहम प्रश्न  है जिसके लिए यहां के बुद्धिजीवियों को अपने संकीर्ण दायरों से बाहर निकल कर हरियाणा की इस क्षेत्र की एक ठोस समीक्षा करते हुए एक स्टेटस पेपर तैयार करने की आवष्यकता है।
यह काम एक बार फिर निराशा  के माहौल से बाहर निकल कर करना जरुरी है। एक सकारात्मक एप्रोच के साथ आगे का रास्ता खोजा जाए वर्ना फासिज्म सिर पर खड़ा है।