शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

गोविंद पंसारे,गरिमा,मानवाधिकारों व तर्कवाद के योद्धा

Posted: 26 Feb 2015 04:10 AM PST
गत 20 फरवरी को,जब कामरेड गोविंद पंसारे की मृत्यु की दुखद खबर आई, तो मुझे ऐसा लगा मानो एक बड़ा स्तंभ ढह गया हो.एक ऐसा स्तंभ जो महाराष्ट्र के सामाजिक आंदोलनों का शक्ति स्त्रोत था। मेरे दिमाग में जो पहला प्रश्न आया वह यह था कि उन्हें किसने मारा होगा और इस तरह के साधु प्रवृत्ति के व्यक्ति की जान लेने के पीछे क्या कारण हो सकता है। ज्ञातव्य है कि कुछ दिन पहलेए सुबह की सैर के वक्त उन्हें गोली मार दी गई थी। पंसारे ने जीवनभर हिंदुत्ववादियों और रूढि़वादी सोच के खिलाफ संघर्ष किया। पिछले माह, कोल्हापुर के शिवाजी विश्वविद्यालय में भाषण देते हुए उन्होंने भाजपा द्वारा गोडसे को राष्ट्रवादी बताकर उसका महिमामंडन किया जाने का मुद्दा उठाया था। पंसारे ने श्रोताओं को याद दिलाया कि गोडसे, आरएसएस का सदस्य था। इस पर श्रोताओं का एक हिस्सा उत्तेजित हो गया। 
उन्हें'सनातन संस्था' नाम के एक संगठन के कोप का शिकार भी होना पड़ा था। पंसारे का कहना था कि यह संस्था हिंदू युवकों को अतिवादी बना रही है। यह वही संगठन है, ठाणे और गोवा में हुए बम धमाकों में जिसकी भूमिका की जांच चल रही है। पंसारे ने खुलकर इस संस्था को चुनौती दी, जिसके बाद संस्था द्वारा उनके खिलाफ मानहानि का दावा भी किया गया।
डॉ. नरेन्द्र दाभोलकर की हत्या के कुछ माह बाद, पंसारे को एक पत्र के जरिये धमकी दी गई थी। पत्र में लिखा था'तुमचा दाभोलकर करेन' ;तुम्हारे साथ वही होगा, जो दाभोलकर के साथ हुआ। उन्हें ऐसी कई धमकियां मिलीं परंतु वे उनसे डरे नहीं और उन्होंने मानवाधिकारों और तर्कवाद के समर्थन में अपना अभियान जारी रखा। वे समाज के सांप्रदायिकीकरण के विरूद्ध अनवरत लड़ते रहे। शिवाजी के चरित्र के उनके विश्लेषण के कारण भी पंसारे,अतिवादियों की आंखों की किरकिरी बन गए थे। जब 15 फरवरी को उन पर हमले की खबर मिली तो मुझे अनायास पिछले साल पुणे में उनके द्वारा शिवाजी पर दिये गये भाषण की याद हो आई। खचाखच भरे हाल में पंसारे ने शिवाजी के जीवन और कार्यों पर अत्यंत विस्तार से और बड़े ही मनोरंजक तरीके से प्रकाश डाला था। श्रोताओं ने उनके भाषण को बहुत रूचि से सुना और उनकी बहुत तारीफ हुई।
शिवाजी की जो छवि वे प्रस्तुत करते थेए वह 'जानता राजा' ;सर्वज्ञानी राजा जैसे शिवाजी पर आधारित नाटकों और सांप्रदायिक तत्वों द्वारा शिवाजी के कार्यकलापों की व्याख्या से एकदम अलग थी। सांप्रदायिक तत्व, शिवाजी को एक मुस्लिम.विरोधी राजा के रूप में प्रस्तुत करते हैं। यह कहा जाता है कि अगर शिवाजी न होते तो हिंदुओं का जबरदस्ती खतना कर उन्हें मुसलमान बना दिया जाता। पंसारे ने गहन अनुसंधान कर शिवाजी का असली चरित्र अपनी पुस्तक'शिवाजी कौन होता' में प्रस्तुत की। यह पुस्तक बहुत लोकप्रिय हुई। इसके कई संस्करण निकल चुके हैं और यह कई भाषाओं में अनुदित की जा चुकी है। अब तक इसकी लगभग डेढ़ लाख प्रतियां बिक चुकी हैं। अपने भाषण में पंसारे ने अत्यंत तार्किक तरीके से यह बताया कि किस तरह शिवाजी सभी धर्मों का आदर करते थे, उनके कई अंगरक्षक मुसलमान थे, जिनमें से एक का नाम रूस्तम.ए.जमां था, उनके राजनीतिक सचिव मौलाना हैदर अली थे और शिवाजी की सेना के एक.तिहाई सिपाही मुसलमान थे। शिवाजी के तोपखाने के मुखिया का नाम था इब्राहिम खान। उनके सेना के कई बड़े अधिकारी मुसलमान थे जिन्हें आज भी महाराष्ट्र में बडे़ प्रेम और सम्मान के साथ याद किया जाता है।
एक साम्यवादी द्वारा एक सामंती शासक की प्रशंसा! यह विरोधाभास क्यों, इस प्रश्न का उत्तर अपने भाषण में उन्होंने जो बातें कहीं, उससे स्पष्ट हो जाता है। उन्होंने तथ्यों के आधार पर यह प्रमाणित किया कि शिवाजी अपनी रैयत की बेहतरी के प्रति बहुत चिंतित रहते थे। उन्होंने किसानों और कामगारों पर करों का बोझ कम किया था। पंसारे जोर देकर कहते थे कि शिवाजी, महिलाओं का बहुत सम्मान करते थे। वे बताते थे कि किस प्रकार शिवाजी ने कल्याण के मुस्लिम राजा की बहू को सम्मानपूर्वक वापस भिजवा दिया था। कल्याण के राजा को हराने के बादए शिवाजी के सैनिक लूट के माल के साथ राजा की बहू को भी अगवा कर ले आये थे। यह किस्सा महाराष्ट्र में बहुत लोकप्रिय है। परंतु हिंदुत्व चिंतक सावरकर, कल्याण के राजा की बहू को सम्मानपूर्वक उसके घर वापस भेजने के लिए शिवाजी की आलोचना करते हैं। सावरकर का कहना था कि उस मुस्लिम महिला को मुक्त कर शिवाजी ने मुस्लिम राजाओं द्वारा हिंदू महिलाओं के अपमान का बदला लेने का मौका खो दिया था!
पंसारे स्वयं यह स्वीकार करते थे कि शिवाजी की उनकी जीवनी ने उनके विचारों को आम लोगों तक पहुंचाने में बहुत मदद की। वे बहुत साधारण परिवार में जन्मे थे और उन्होंने अपना जीवन अखबार बेचने से शुरू किया था। शिवाजी पर उनकी अत्यंत लोकप्रिय पुस्तक के अलावाए उन्होंने 'अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण',छत्रपति शाहू महाराज, संविधान का अनुच्छेद 370 और मंडल आयोग जैसे विषयों पर भी लेखन किया था। इससे यह साफ है कि उनका अल्पसंख्यकों के अधिकारो,जातिवाद आदि जैसे मुद्दों से भी गहरा जुड़ाव था। वे जनांदोलनों से भी जुड़े थे और कोल्हापुर में टोल टैक्स के मुद्दे पर चल रहे आंदोलन में उनकी अग्रणी भूमिका थी।
कामरेड पंसारे ने स्वयं को मार्क्स और लेनिन की विचारधारा की व्याख्या तक सीमित नहीं रखा। यद्यपि वे प्रतिबद्ध कम्युनिस्ट थे परंतु शिवाजी, शाहू महाराज और जोतिराव फुले भी उनके विचारधारात्मक पथप्रदर्शक थे। वे यह मानते थे कि शाहू महाराज और फुले ने समाज में समानता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। वे स्वयं भी जातिवाद और धार्मिक अल्पसंख्यकों से जुड़े मुद्दों का गंभीरतापूर्वक अध्ययन करते थे और इन विषयों पर अपने प्रबुद्ध विचार लोगों के सामने रखते थे। एक तरह से उन्होंने भारतीय वामपंथियों की एक बहुत बड़ी कमी की पूर्ति करने की कोशिश की। प्रश्न यह है कि साम्यवादी आंदोलन ने जातिगत मुद्दों पर क्या रूख अपनाया ? पंसारे जैसे कम्युनिस्टों ने जाति के मुद्दे पर फोकस किया और दलित.ओबीसी वर्गों के प्रतीकों.जिनमें शाहू महाराज, जोतिराव फुले व आंबेडकर शामिल हैं.से स्वयं को जोड़ा। परंतु दुर्भाग्यवश,वामपंथी आंदोलन ने इन मुद्दों को कभी गंभीरता से नहीं लिया। भारत जैसे जातिवाद से ग्रस्त समाज में कोई भी सामाजिक आंदोलन तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक कि उसमें जाति के कारक को समुचित महत्व न दिया जाए। उनके जीवन से हम यह सीख सकते हैं कि भारत में सामाजिक परिवर्तनकामियों को अपनी रणनीति में क्या बदलाव लाने चाहिए।
पंसारे पर हुए हमले ने डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या की याद फिर से ताजा कर दी है। दक्षिणपंथी ताकतें अपने एजेंडे को लागू करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। उनकी हिम्मत बहुत बढ़ चुकी है। दाभोलकर और पंसारे असाधारण सामाजिक कार्यकर्ता थे। दोनों तर्कवादी थे, अंधविश्वासों के विरोधी थे और जमीन पर काम करते थे। दोनों पर हमला मोटरसाईकिल पर सवार बंदूकधारियों ने तब किया जब वे सुबह की सैर कर रहे थे। दोनों को उनकी हत्या के पहले सनातन संस्था और अन्य दक्षिणपंथी संगठनों की ओर से धमकियां मिलीं थीं।
कामरेड पंसारे की हत्या के बाद पूरे महाराष्ट्र में गुस्से की एक लहर दौड़ गई। राज्य में अनेक स्थानों पर विरोध प्रदर्शन हुए। ये विरोध प्रदर्शन इस बात का प्रतीक थे कि आमजन उन्हें अपना साथी और हितरक्षक मानते थे। क्या हमारे देश के सामाजिक आंदोलनों के कर्ताधर्ताए कामरेड पंसारे के अभियान को आगे ले जायेंगे? यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
-राम पुनियानी
 

दोराहे पर ठिठका भारतीय प्रजातंत्र

दोराहे पर ठिठका भारतीय प्रजातंत्र

असगर अली इंजीनियर स्मृति व्याख्यान
मैं अपने इस व्याख्यान की शुरूआत, अपने अभिन्न मित्र डाॅ. अस़गर अली इंजीनियर को श्रद्धांजलि देकर करना चाहूंगा, जिनके साथ लगभग दो दशक तक काम करने का सौभाग्य मुझे मिला। डाॅ. इंजीनियर एक बेमिसाल अध्येता-कार्यकर्ता थे। वे एक ऐसे मानवीय समाज के निर्माण के स्वप्न के प्रति पूर्णतः प्रतिबद्ध थे, जो विविधता के मूल्यों का आदर और अपने सभी नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा करे।
इस संदर्भ में वे उन चंद लोगों में से थे जिन्हें सबसे पहले यह एहसास हुआ कि सांप्रदायिकता की विघटनकारी राजनीति, देश और समाज के लिए कितनी घातक है। उन्होंने सांप्रदायिक हिंसा के कारकों के अध्ययन और विष्लेषण की परंपरा शुरू की। वे हर सांप्रदायिक दंगे का अत्यंत गंभीरता और सूक्ष्मता से अध्ययन किया करते थे। बोहरा समाज, जिससे वे थे, में सुधार लाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। इस्लाम की शिक्षाओं की उनकी व्याख्या के लिए उन्हें दुनियाभर में जाना जाता है। अगर हम एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जो शान्ति, सद्भाव, सहिष्णुता और करूणा पर आधारित हो, तो हम उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं।
राष्ट्र के रूप में हम आज कहां खड़े हैं? भारतीय प्रजातंत्र के समक्ष कौन-से खतरे हैं और क्या मोदी सरकार के आने के बाद से ये खतरे बढ़े हैं?
आमचुनाव में मोदी की जीत कई कारणों से हुई। उन्हें भारतीय उद्योग जगत का पूर्ण समर्थन मिला, लाखों की संख्या में आरएसएस के जुनूनी कार्यकर्ताओं ने उनके चुनाव अभियान को मजबूती दी, कार्पोरेट द्वारा नियंत्रित मीडिया ने उनका महिमामंडन किया और ‘‘गुजरात के विकास के माॅडल’’ को एक आदर्श के रूप मे प्रचारित किया। समाज को धार्मिक आधार पर धु्रवीकृत किया गया और अन्ना हजारे, बाबा रामदेव व अरविंद केजरीवाल के आंदोलनों के जरिये, कांग्रेस की साख मिट्टी में मिला दी गई। इस आंदोलन का अंत, आप के गठन के साथ हुआ।
मोदी का ‘अच्छे दिन‘ लाने का वायदा हवा हो गया है। कच्चे तेल की कीमतों में भारी कमी आने के बावजूद, भारत में महंगाई बढ़ती जा रही है। लोगों के लिए अपनी जरूरतें पूरी करना मुष्किल होता जा रहा है। मोदी ने वायदा किया था कि विदेशों में जमा कालाधन, छः माह के भीतर वापस लाया जायेगा और हम सब अपने बैंक खातों में 15-15 लाख रूपये जमा देखकर चकित हो जायेंगे। यह वायदा भुला दिया गया है। जहां तक सुशासन का सवाल है, मोदी की दृष्टि में शायद उसका अर्थ अपने हाथों में सत्ता केंद्रित करना है। केबिनेट प्रणाली की जगह, देश  पर एक व्यक्ति का एकाधिकारी शासन कायम हो गया है। भारत सरकार के सचिवों कोे निर्देश दिया गया है कि वे सीधे प्रधानमंत्री के संपर्क में रहें। मंत्रियों की तो मानो कोई अहमियत ही नहीं रह गई है।
स्वयंसेवी संस्थाओं के लिए आर्थिक संसाधन जुटाना कठिन होता जा रहा है। ‘ग्रीन पीस’ सरकार की इस नीति का प्रमुख शिकार बनी है। पिछली सरकार द्वारा शुरू की गई कल्याण योजनाओं को एक-एक कर बंद किया जा रहा है। वे कुबेरपति, जिन्होंने मोदी के चुनाव अभियान को प्रायोजित किया था, अपने खजाने भरने में जुटे हुए हैं। पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को परे रखकर, उन्हें देश का अंधाधुंध औद्योगिकरण करने की खुली छूट दे दी गई है। नये प्रधानमंत्री को न भूतो न भविष्यति नेता के रूप में प्रचारित किया जा रहा है और उनके चारों ओर एक आभामंडल का निर्माण करने की कोशिश हो रही है।
इन सब नीतियों और कार्यक्रमों से सबसे अधिक नुकसान समाज के कमजोर वर्गों को उठाना पड़ रहा है। ‘श्रम कानूनों मंे सुधार’ के नाम पर श्रमिकों को जो भी थोड़ी-बहुत सुरक्षा प्राप्त थी, उससे भी उन्हें वंचित करने की तैयारी हो रही है। उद्योगपतियों के लिए भूमि अधिग्रहण करना आसान बना दिया गया है। किसानों से येन-केन-प्रकारेण उनकी जमीनें छीनी जा रही हैं। गरीबों के लिए चल रही समाज कल्याण योजनाओं व भोजन और स्वास्थ्य के अधिकार को खत्म करने की तैयारी है।
धार्मिक अल्पसंख्यकों को आतंकित करने का सिलसिला जारी है। एक केंदीय  मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति की हिम्मत इतनी बढ़ गई कि उन्होंने सभी गैर-हिंदुओं को हरामजादे बता दिया। एक अन्य भगवाधारी भाजपा नेता, नाथूराम गोडसे को ‘देशभक्त’ बता रहे हैं और हिंदू महिलाओं से ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील कर रहे हैं। हिंदुत्ववादी, महात्मा गांधी के हत्यारे गोडसे का महिमामंडन कर रहे हैं। वे हमेशा से गोडसे के प्रशसक थे परंतु नई सरकार आने के बाद से उनकी हिम्मत बढ़ गई है। क्रिसमस पर ‘सुशासन दिवस’ मनाने की घोषणा कर इस त्योहार के महत्व को कम करने की कोशिश की गई। ऐसी मांग की जा रही है कि हिंदू धर्मगं्रथ गीता को देश की राष्ट्रीय पुस्तक घोषित किया जाये। चर्चों और मस्जिदों पर हमले हो रहे हैं। अनेक नेता बिना किसी संकोच या डर के चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे हैं कि हम सब हिंदू हैं और भारत, एक हिंदू राष्ट्र है।
इस सबके बीच नरेन्द्र मोदी चुप्पी ओढ़े हुए हैं। शायद इसलिए क्योंकि जो कुछ हो रहा है, वह भाजपा और उसके पितृ संगठन आरएसएस के एजेन्डे का हिस्सा है। संघ का मूल लक्ष्य देश को संकीर्ण हिन्दू राष्ट्रवाद की ओर ले जाना है। हिन्दू राष्ट्रवाद, मुस्लिम अतिवाद और ईसाई कट्टरवाद से मिलती-जुलती अवधारणा है। इस संदर्भ में यह याद रखना समीचीन होगा कि भारत में ‘धार्मिक राष्ट्रवाद’ की धाराओं का जन्म, भारतीय राष्ट्रवाद के उदय की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ। सन् 1888 में सामंतों और राजाओं-नवाबों ने मिलकर युनाईटेड इंडिया पेट्रियाटिक एसोसिएशन का गठन किया। बाद में मध्यम वर्ग और उच्च जातियों का श्रेष्ठि तबका भी इस संगठन से जुड़ गया। इसी संगठन के गर्भ से उत्पन्न हुए मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा, जो अपने-अपने धर्म का झंडा उठाए हुए थे।
हिन्दू महासभा के सावरकर ने सबसे पहले हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना प्रस्तुत की और सन् 1925 में गठित आरएसएस ने इसे अपना लक्ष्य बना लिया। उसने लोगों के दिमागों में यह जहर भरना शुरू किया कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है और यहां रहने वाले ईसाई और मुसलमान विदेशी हैं। यह विचार महात्मा गांधी, भगतसिंह व डाॅ. अम्बेडकर की समावेशी राष्ट्रवाद की अवधारणा के धुर विपरीत था।
हमें यह याद रखना चाहिए कि साम्प्रदायिक संगठनों ने स्वाधीनता संग्राम से सुरक्षित दूरी बनाए रखी और जब देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त होने के लिए संघर्षरत था तब ये संगठन देश में घृणा फैलाकर दंगे करवाने में जुटे हुए थे। साम्प्रदायिक हिंसा की आग शनैः-शनैः तेज होती गई और इसके कारण राष्ट्र के रूप में हमें भारी नुकसान झेलना पड़ा।  साम्प्रदायिकता के दानव ने ही देश का विभाजन करवाया और नई सीमा के दोनों ओर के करोड़ों लोगों को घोर पीड़ा और संत्रास के दौर से गुजरना पड़ा।
हमें यह भी याद रखना चाहिए कि ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों की उनकी फूट डालो और राज करो की नीति को लागू करने में साम्प्रदायिक संगठनों ने काफी मदद की। इनमें हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों के साम्प्रदायिक संगठन शामिल थे। आरएसएस की विचारधारा में रचे-बसे उसके प्रचारक नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की हत्या की। यह व्यापक भारतीय राष्ट्रवाद पर हिन्दू राष्ट्रवाद का पहला बड़ा आक्रमण था।
जहां एक ओर आरएसएस ने स्वाधीनता संग्राम को नजरअंदाज किया वहीं दूसरी ओर उसने अपने स्वयंसेवकों को हिन्दू राष्ट्रवाद की संकीर्ण विचारधारा की घुट्टी पिलाई। इन स्वयंसेवकों ने समय के साथ पुलिस, नौकरशाही और राज्यतंत्र के अन्य हिस्सों में घुसपैठ कर ली। आरएसएस ने अपने अनुषांगिक संगठनों का एक बहुत बड़ा ढांचा खड़ा किया। इनमें शामिल हैं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम, विष्व हिन्दू परिषद व बजरंग दल। संघ के स्वयंसेवकों के परिवारों की महिलाओं ने राष्ट्र सेविका समिति नामक संगठन बनाया।
आरएसएस लगातार ‘पहचान’ से जुड़े मुद्दे उठाता रहा है। ‘गौरक्षा‘ और ‘मुसलमानों के भारतीयकरण‘ के अभियानों के जरिए अल्पसंख्यकों को आतंकित किया जाता रहा है और व्यापक समाज में यह संदेश पहुंचाया जाता रहा है कि मुसलमान, भारतीय नहीं हैं और देश के प्रति उनकी वफादारी संदिग्ध है।
सन् 1980 का दशक आते-आते हिन्दुत्व ब्रिगेड के मुंहजुबानी प्रचार, मीडिया के एक हिस्से के उससे जुड़ाव और इतिहास की स्कूली पाठ्यपुस्तकों के पुनर्लेखन के नतीजे में समाज के बहुत बड़े तबके में मुसलमानों के प्रति संदेह और घृणा का भाव उत्पन्न हो गया। हिन्दुत्ववादी ताकतों ने ही बहुत बेशर्मी से बाबरी मस्जिद को ढहाया। उसके पहले, आडवानी ने रथ यात्रा निकाली, जो अपने पीछे खून की लकीर छोड़ती गई।
इसके बाद साम्प्रदायिक हिंसा में और बढ़ोत्तरी हुई। हिन्दू ‘पहचान‘ को देश की एकमात्र वैध पहचान घोषित कर दिया गया। धार्मिक आधार पर धु्रवीकरण इतना बढ़ गया कि 1992-93 में मुंबई, सूरत और भोपाल में भयावह खूनखराबा हुआ। गुजरात में सन् 2002 में हुई साम्प्रदायिक विभीषिका के बारे में तो हम सब जानते ही हैं।
सन् 1980 के दशक का अंत आते-आते साम्प्रदायिक ताकतों ने मुसलमानों के अलावा ईसाईयों को भी अपने निशाने पर ले लिया। यह कहा जाने लगा कि वे हिन्दुओं का धर्मपरिवर्तन करवा रहे हैं। आदिवासी इलाकों में हिंसा भड़क उठी और इसके नतीजे में सन् 1999 में पाॅस्टर ग्राहम स्टेन्स और उनके दो मासूम बच्चों को जिंदा जला दिया गया। सन् 2008 में कंधमाल में अनेक निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया।
यह सब उस सोच का नतीजा था, जिसे संघ चिंतक एम. एस. गोलवलकर ने आकार दिया था। उनका दावा था कि भारत हमेश से हिन्दू राष्ट्र है व धार्मिक अल्पसंख्यकों को यहां या तो बहुसंख्यकों की दया पर जीना होगा और या फिर उन्हें नागरिक के तौर पर उनके सभी अधिकारों से वंचित कर दिया जाएगा।
सन् 2014 में भाजपा दूसरी बार सत्ता में आई। इसके पहले, सन् 1998 में वह सत्ताधारी एनडीए गठबंधन का हिस्सा थी। उस समय भाजपा को लोकसभा में बहुमत प्राप्त नहीं था इसलिए वह अपना एजेन्डा खुलकर लागू नहीं कर सकी। परंतु फिर भी उसने सफलतापूर्वक स्कूली पाठ्यपुस्तकों का भगवाकरण किया और पुरोहिताई व ज्योतिष जैसे अवैज्ञानिक विषयों को कालेजों और विष्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल करवाया। उसने हवा का रूख भांपने के लिए संविधान का पुनरावलोकन करने के लिए एक समिति का गठन भी किया।
अब, जबकि भाजपा पूर्ण बहुमत से सत्ता में है, वह बिना किसी लागलपेट के अपना एजेन्डा लागू कर रही है। लगभग सारे राष्ट्रीय संस्थानों में साम्प्रदायिक सोच वाले लोगोें का कब्जा हो गया है। प्रोफेसर के. सुदर्शन राव, जो भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के अध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं, का कहना है कि जाति व्यवस्था से देश बहुत लाभान्वित हुआ है। वे महाभारत और रामायण की ऐतिहासिकता में भी विष्वास करते हैं। यह अलग बात है कि इतिहासविदों की जमात में राव को बहुत सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता। नई सरकार संस्कृत भाषा को प्रोत्साहन दे रही है। ऐसा इस तथ्य के बावजूद किया जा रहा है कि संस्कृत कभी आमजनों की भाषा नहीं रही है।
हमारा संविधान सरकार को यह जिम्मेदारी देता है कि वह वैज्ञानिक सोच को प्रोत्साहन दे। इसके ठीक उलट, सरकार विज्ञान में रूढि़वादी और अतार्किक परिकल्पनाओं को ठूंस रही है। हमें अब बताया जा रहा है कि प्राचीन भारत में 200 फीट लंबे विमान थे और प्लास्टिक सर्जरी होती थी। इस महिमामंडन का उद्धेष्यशायद यह साबित करना है कि भारत, हजारों साल पहले विज्ञान के क्षेत्र में इतना उन्नत था जितना कि आज भी विष्व के विकसित देश नहीं हैं। निःसंदेह, भारत के चरक, सुश्रुत और आर्यभट्ट जैसे प्राचीन वैज्ञानिकों ने विज्ञान के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल कीं थीं परंतु यह मानना मूर्खता होगी कि प्राचीन भारतीय विज्ञान, आज के विज्ञान से भी अधिक विकसित था। यह, दरअसल, भारतीयों में श्रेष्ठता का दंभ भरने का बचकाना प्रयास है।
किसी भी प्रजातंत्र के लिए स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मूल्य सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। अपने हिन्दुत्ववादी एजेन्डे के तहत, भाजपा सरकार संविधान से ‘धर्मनिरपेक्ष‘ व ‘समाजवादी‘ शब्दों को हटाने की कवायद कर रही है। उसे अल्पसंख्यकों की आशंकाओं और चिंताओं की तनिक भी परवाह नहीं है। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के मूल्य गंभीर खतरे में हैं। हम आज इतिहास के ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जब भारतीय संविधान के अस्तित्व को ही खतरा पैदा हो गया है।
हम अगर अब भी नहीं जागे तो बहुत देर हो जायेगी। हमें इस खतरे का मुकाबला करने के लिए कई कदम उठाने होंगे। हमें दलितों, महिलाओं, श्रमिकों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के हकों के लिए लड़ना होगा। हमें अपने प्रजातांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए समान विचारों वाले संगठनों के साथ गठबंधन कर, एक मंच पर आना होगा। प्रजातंत्र और धर्मनिरपेक्षता के पैरोकारों में एकता, समय की मांग है। हमें हाथों में हाथ डाल, एक साथ आगे बढ़ना होगा। गैर-सांप्रदायिक राजनैतिक दलों का गठबंधन बनाकर, सांप्रदायिक शक्तियों को अलग-थलग करना होगा।
हिंदू राष्ट्रवाद की संकीर्ण राजनीति, फासीवादी और धार्मिक कट्टरपंथी शासन व्यवस्था का मिलजुला स्वरूप है। इस तरह के सन में प्रजातांत्रिक स्वतंत्रताएं सिकुड़ती जाती हैं। इसकी शुरूआत भी हो गई है। कुछ पुस्तकों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और कुछ नई पुस्तकें, जिनमें दीनानाथ बत्रा की किताबें शामिल हैं, को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
अब समय आ गया है कि हम सोशल, प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक मीडिया में अपने लिए जगह बनायें। हमें विविधता, बहुवाद और उदारवादी मूल्यों को प्रोत्साहन देना है। ये ही हमें मानवीय, प्रजातांत्रिक समाज का निर्माण करने में मदद करेंगे।
-राम पुनियानी

हेपेटाइटिस सी का इलाज

हेपेटाइटिस सी का इलाज

हेपेटाइटिस सी एक संक्रामक रोग है जो हेपेटाइटिस सी वायरस एचसीवी (HCV) की वजह से होता है और यकृत को प्रभावित करता है.[1] इसका संक्रमण अक्सर स्पर्शोन्मुख होता है लेकिन एक बार होने पर दीर्घकालिक संक्रमण तेजी से यकृत (फाइब्रोसिस) के नुकसान और अधिक क्षतिग्रस्तता (सिरोसिस) की ओर बढ़ सकता है जो आमतौर पर कई वर्षों के बाद प्रकट होता है. कुछ मामलों में सिरोसिस से पीड़ित रोगियों में से कुछ को यकृत कैंसर हो सकता है या सिरोसिस की अन्य जटिलताएं जैसे कि यकृत कैंसर[1] और जान को जोखिम में डालने वाली एसोफेजेल वराइसेस तथा गैस्ट्रिक वराइसेस विकसित हो सकती हैं.
हेपेटाइटिस सी वायरस रक्त से रक्त के संपर्क द्वारा फैलता है. शुरुआती संक्रमण के बाद अधिकांश लोगों में, यदि कोई हों, तो बहुत कम लक्षण होते हैं, हालांकि पीड़ितों में से 85% के यकृत में वायरस रह जाता है. इलाज के मानक देखभाल जैसे कि दवाइयों, पेजिन्टरफेरॉन और रिबावायरिन से स्थायी संक्रमण ठीक हो सकता है. इकावन प्रतिशत से ज्यादा पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं. जिन्हें सिरोसिस या यकृत कैंसर हो जाता है, उन्हें यकृत के प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है तथा प्रत्यारोपण के बाद ही वायरस पूरी तरह से जाता है.
एक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में 270-300 मिलियन लोग हेपेटाइटिस सी से संक्रमित हैं. हेपेटाइटिस सी पूरी तरह से मानव रोग है. इसे किसी अन्य जानवर से प्राप्त नहीं किया जा सकता है न ही उन्हें दिया जा सकता है. चिम्पांजियों को प्रयोगशाला में इस वायरस से संक्रमित किया जा सकता है लेकिन उनमें यह बीमारी नहीं पनपती है, जिसने प्रयोग को और मुश्किल बना दिया है. हेपेटाइटिस सी के लिए कोई टीका उपलब्ध नहीं है. हेपेटाइटिस सी की मौजूदगी (मूलतः "नॉन-ए (Non-A) नॉन-बी (Non-B) हेपेटाइटिस") 1970 के दशक में मान ली गयी थी और 1989 में आखिरकार सिद्ध कर दी गयी. यह हेपेटाइटिस के पांच वायरसों: ए (A), बी (B), सी (C), डी (D), ई (E) में से एक है.

संकेत और लक्षण[संपादित करें]

तीव्र[संपादित करें]

तीव्र हेपेटाइटिस सी एचसीवी (HCV) के साथ होने वाले पहले 6 महीनों के संक्रमण को संदर्भित करता है. 60% से 70% संक्रमित लोगों में तीव्र चरण के दौरान कोई लक्षण दिखाई नहीं देता है. रोगियों की एक अल्प संख्या तीव्र चरण के लक्षणों को महसूस करती है, वे आमतौर पर हल्के और साधारण होते हैं तथा हेपेटाइटिस सी का निदान करने में कभी कभार ही मदद करते हैं. तीव्र हेपेटाइटिस सी के संक्रमण में कम भूख लगना, थकान, पेट दर्द, पीलिया, खुजली और फ्लू जैसे लक्षण शामिल हैं. हेप सी जेनोटाइप्स 2ए (2A) और 3ए (3A) में रोगमुक्त होने की उच्चतम दर क्रमशः 81% और 74% मौजूद है.
पीसीआर (PCR) द्वारा संक्रमण होने के तकरीबन एक से तीन सप्ताह के बीच आमतौर पर खून में हेपेटाइटिस सी वायरस के होने का पता लगता है और आमतौर पर 3 से 15 सप्ताह के बीच वायरस से प्रतिरक्षकों (एंटीबॉडिज) का पता लगता है. स्वाभाविक वायरल निकासी दरों में अधिकतम भिन्नता है और एचसीवी (HCV) से पीड़ित 10-60%[2] लोग तीव्र चरण के दौरान वायरस को अपने शरीर से अलग करने में कामयाब हो जाते हैं जैसा कि यकृत एंजाइम्स ((ऐलानाइन ट्रांसामिनेस (एएलटी) (ALT) और ऐस्परटेट ट्रांसामिनेस (एएसटी) (AST)) तथा प्लाज़्मा एचसीवी-आरएनए (HCV-RNA) क्लीयरेंस के सामान्यीकरण द्वारा दर्शाया गया है (इसे स्पॉनटेनियस वायरल क्लीयरेंस के नाम से जाना जाता है). हालांकि, स्थायी संक्रमण आम[3] हैं और अधिकतर मरीजों में दीर्घकालिक हेपेटाइटिस सी यानी 6 महीने से अधिक समय तक रहने वाला संक्रमण विकसित होता है.[4][5][6]
पहले यह देखने के लिए कि यह अपने-आप खत्म होता है या नहीं, तीव्र संक्रमण से पीड़ित व्यक्ति का इलाज नहीं किया जाता था; हाल के अध्ययनों से पता चला है कि जीनोटाइप 1 संक्रमण के तीव्र चरण के दौरान इलाज करने से सफलता की संभावना 90% से अधिक होती है, जो दीर्घकालिक संक्रमण के इलाज के लिए आवश्यक समय से आधा ही है.[7]

दीर्घकालिक[संपादित करें]

हेपेटाइटिस सी वायरस का संक्रमण छह महीनों से ज्यादा रहने पर उसे दीर्घकालिक हेपेटाइटिस के रूप में परिभाषित किया गया है. नैदानिक तौर पर, यह अक्सर स्पर्शोन्मुख (लक्षण के बिना) होता है और अक्सर इसका पता संयोगवश चलता है (जैसे सामान्य जांच).
दीर्घकालिक हेपेटाइटिस सी का स्वाभाविक प्रवाह प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न-भिन्न होता है. हालांकि एचसीवी (HCV) से संक्रमित सभी व्यक्तियों की जिगर बायोप्सी में सूजन के सबूत मिले हैं. लीवर स्केरिंग (फाइब्रोसिस) के विकास की दर अलग-अलग व्यक्तियों में भिन्नता जाहिर करती है. समय के साथ जोखिम का सही आकलन करना मुश्किल होता है क्योंकि इस वायरस के परीक्षण के लिए बहुत कम समय मिल पाता है.
हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि अनुपचारित मरीजों में से एक तिहाई को मोटे तौर पर कम से कम 20 वर्षों में यकृत सिरोसिस हो जाता है. अन्य एक तिहाई लोगों में सिरोसिस 30 वर्षों के भीतर विकसित होता है. बाकी के मरीजों में इतनी धीमी गति से विकास होता है कि उनकी जिंदगी में सिरोसिस होने का कोई खतरा नहीं रहता है. इसके विपरीत एनआईएच (NIH) सर्वसम्मत दिशा निर्देश कहता है कि 20 वर्ष की अवधि में सिरोसिस होने का जोखिम 3-20 प्रतिशत है.[8]
एचसीवी (HCV) रोग की दर को प्रभावित करने वाले कारकों में उम्र (बढ़ती उम्र तेजी से प्रगति के साथ जुड़ी है), लिंग (बीमारी महिलाओं की तुलना में पुरुषों में तेजी से विकसित हो सकती है), शराब की खपत (रोग की दर को बढ़ाने से संबद्ध), एचआईवी (HIV) (रोग को उल्लेखनीय स्तर तक बढ़ाने के लिए जिम्मेदार) सह-संक्रमण और फैटी यकृत (यकृत की कोशिकाओं में वसा की उपस्थिति बढ़ने से रोग बढ़ने की दर तेजी से बढ़ती है) शामिल है.
यकृत की बीमारी के लक्षण आम तौर पर विशेष रूप से तब तक अनुपस्थित रहते हैं जब तक यकृत में वास्तविक रूप में नुकसान न हो जाता हो. हालांकि, हेपेटाइटिस सी एक दैहिक रोग है और रोगियों को नैदानिक प्रदर्शन में लक्षणों की अनुपस्थिति से लेकर गंभीर बीमारी का रूप लेने से पहले तक व्यापक अंतर दिखाई दे सकता है. दीर्घकालिक हेपेटाइटिस सी के साथ जुड़े व्यापक लक्षणों में थकान, फ्लू जैसे लक्षण, गांठ का दर्द, खुजली, स्वप्नदोष, भूख में कमी, मिचली और अवसाद शामिल हैं.
यकृत के काम करने में कमी आने या यकृत संचरण पर अधिक दबाव पड़ने की स्थिति में दीर्घकालिक हेपेटाइटिस सी सिरोसिस की स्थिति तक पहुंच जाता है. इस अवस्था को पोर्टल हाइपरटेंशन कहते हैं. यकृत सिरोसिस के संभावित संकेतों और लक्षणों में एसाइट्स जलोदर (पेट में तरल पदार्थ का संचय), चोट और खून बहने की प्रवृत्ति और वराइसेस (पेट और घुटकी में विशेष रूप से बढ़ी हुई नस), पीलिया और संज्ञानात्मक हानि का लक्षण जिसे हेपाटिक एनसेफालोपेथी कहा जाता है, शामिल है. अमोनिया और अन्य पदार्थों के संचय की वजह से हेपाटिक एनसेफालोपैथी होती है, जिसे सामान्य तौर पर एक स्वस्थ यकृत द्वारा साफ कर लिया जाता है.
यकृत एंजाइम परीक्षणों में एएलटी (ALT) औऱ एएसटी (AST) की भिन्न ऊंचाई दिखाई देती है. समय-समय पर वे सामान्य परिणाम भी दिखा सकते हैं. आमतौर पर प्रोथ्रोम्बीन और एल्बुमीन के परिणाम सामान्य होते हैं लेकिन एक बार सिरोसिस होने पर असामान्य हो सकते हैं. यकृत परीक्षणों की ऊंचाई का स्तर बायोप्सी पर यकृत के नुकसान के साथ मेल नहीं खाते हैं. वायरल जीनोटाइप और विषाणु जनित भार भी यकृत की चोट के साथ मेल नहीं खाते. नुकसान (स्केरिंग) और सूजन का सही निर्धारण करने के लिए जिगर की बायोप्सी सबसे अच्छा परीक्षण है. अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन जैसे रेडियोग्राफिक अध्ययन अगर काफी उन्नत न हो तो यकृत के नुकसान को नहीं दर्शाते. हालांकि, लीवर फाइब्रोसिस और नेक्रोटिको-सूजन का आकलन करने के लिए क्रमशः फाइब्रो टेस्ट[9] और एक्टीटेस्ट जैसे गैर आक्रामक परीक्षण (खून का नमूना) आ रहे हैं. इन परीक्षणों की पुष्टि[10] हो चुकी है और यूरोप में इनकी सिफारिश की जा चुकी है (संयुक्त राज्य अमेरिका में एफडीए (FDA) प्रक्रियाएं शुरू हो चुकी हैं)
हेपेटाइटिस सी के अन्य रूपों की तुलना में दीर्घकालिक हेपेटाइटिस को एकस्ट्राहेपेटिक प्रदर्शन के साथ जोड़ा जा सकता है, जो एचसीवी (HCV) की उपस्थिति से जैसे कि पोरफाइरिया कुटेनिया टार्डा, क्रायोग्लोबुलिनेमिया (स्मॉल वेसल वेसकुलिटिस का एक स्वरुप)[11], ग्लोमेरुलोनफ्राइटिस (गुर्दे की सूजन और जलन) और खासकर, मेम्ब्रानोप्रोलिफरेटिव ग्लोमेरुलोनफ्राइटिस-एमपीजीएन (MPGN) से जुड़ा होता है.[24] हेपेटाइटिस सी को शायद ही कभी सिक्का सिंड्रोम (sicca syndrome) थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया, लिचेन प्लेनस, डायबीटीज़ मेलिटस और बी- सेल लिम्फोप्रोलाइफरेटिव विकार से जोड़ा जाता है.[12]

विषाणु विज्ञान (वायरोलॉजी)[संपादित करें]

हेपेटाइटिस सी वायरस छोटा (आकार में 50 एनएम), घिरा हुआ, एकल-असहाय, सकारात्मक भाव वाला आरएनए (RNA) वायरस है. यह फ्लाविविरिडी (Flaviviridae) परिवार में हेपसीवायरस जीनस का एकमात्र ज्ञात सदस्य है. हेपेटाइटिस सी वायरस के छह प्रमुख जीनोटाइप हैं जिन्हें संख्यानुसार दर्शाया जाता है (जैसे जीनोटाइप 1, जीनोटाइप 2 आदि).
हेपेटाइटिस सी वायरस रक्त से रक्त का संपर्क होने पर फैलता है. यह अनुमान लगाया गया है कि विकसित देशों में 90% व्यक्तियों में दीर्घकालिक एचसीवी (HCV) संक्रमण अपरीक्षित रक्त या रक्त उत्पादों या नशीली दवाओं की सुई के प्रयोग या यौन संपर्क के माध्यम से संक्रमित होता है. विकासशील देशों में एचसीवी (HCV) संक्रमण के प्राथमिक स्रोत हैं, संक्रमित इंजेक्शन उपकरण और अपर्याप्त परीक्षित रक्त तथा रक्त उत्पादों के सम्मिश्रण. एक दशक से ज्यादा समय से संयुक्त राज्य अमेरिका में रक्त आधान से एक भी प्रलेखित मामला नहीं हुआ है क्योंकि रक्त की आपूर्ति को ईआईए (EIA) और पीसीआर (PCR) दोनों तकनीकों से परखा जाता है.
हालांकि इंजेक्शन से नशीली दवाओं का प्रयोग करना एचसीवी (HCV) संक्रमण का सबसे आम रास्ता है, कोई भी ऐसा कार्य या गतिविधि या स्थिति जिसमें खून से खून का संपर्क होने की संभावना है एचसीवी (HCV) संक्रमण का संभावित स्रोत हो सकता है. यौन संपर्क करने पर यह वायरस संचरित हो सकता है लेकिन ऐसा कम ही होता है और आमतौर पर ऐसा तभी होता है जब एक एसटीडी (STD) के कारण घाव खुल जाते हैं और रक्तस्राव का होता है तथा अधिक रक्त संपर्क होने की संभावना बढ़ाता है.[13].

संचरण[संपादित करें]

अमेरिका में हेपेटाइटिस सी के स्रोत से संक्रमण. एन डी (सीडीसी, [28])
शुरू में यौन गतिविधियों और व्यवहारों को हेपेटाइटिस सी वायरस के संभावित स्रोतों के रूप में पहचाना गया था. हाल के अध्ययन संचरण के इस मार्ग पर सवाल उठाते हैं.[14] वर्तमान में हेपेटाइटिस सी के संक्रमण के लिए इस संचरण को दुर्लभ माना जा रहा है. वर्तमान में संचरण के ज्ञात तरीके निम्नलिखित हैं. संचरण के अन्य रूप हो सकते हैं, जो अभी तक अज्ञात हों.

इंजेक्शन से दवा का उपयोग[संपादित करें]

वर्तमान में जिन लोगों ने ड्रग्स के लिए इंजेक्शन का प्रयोग किया है या अतीत में कर चुके हैं, उन लोगों में हेपेटाइटिस सी होने का जोखिम बढ़ा रहता है. ऐसा माना जाता है कि शायद इन लोगों ने साझा सुई या अन्य दवा सामग्री का प्रयोग किया होगा (जिसमें कुकर, कपास, चम्मच, पानी शामिल हैं), जो एचसीवी (HCV)- संक्रमित रक्त द्वारा संदूषित किया जा सकता है. एक अनुमान के अनुसार संयुक्त राज्य अमेरिका में 60% से 80% अंतःशिरा मनोरंजक दवा उपयोगकर्ताओं के एचसीवी (HCV) से संक्रमित होने की आशंका है.[15] अनेक देशों में हेपेटाइटिस सी को फैलने से रोकने के लिए नुकसान कम करने की रणनीतियों को शिक्षा, साफ और सुरक्षित सुई और सीरिंज के प्रावधान तथा सुरक्षित इंजेक्शन तकनीक को प्रोत्साहित किया. वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका में इस मार्ग से प्रसारण में गिरावट देखी गयी है जिसका कारण अभी स्पष्ट नहीं हैं.
13 अप्रैल 2000 को बेनिफिट्स कमिटी ऑन वेटरन्स अफेयर्स की उपसमिति (Subcommittee on Benefits Committee on Veterans’ Affairs), अमेरिकी हाउस के प्रतिनिधियों के समक्ष वेटरन्स स्वास्थ्य प्रशासन, स्टेट वेटरन्स अफेयर्स विभाग के लिए गैरी ए रोज़ेल, एम. डी. (M.D.), संक्रामक बीमारियों के लिए कार्यक्रम निदेशक ने वीए (VA) साक्ष्य पेश करते हुए कहा, "दस अमेरिकी बुजुर्गों में से एक एचसीवी (HCV) से संक्रमित है, जो कि आम आबादी के संक्रामक दर 1.8% से 5 गुना अधिक है."
1999 में वेटरन्स हेल्थ एडमिनिस्ट्रेशन वीएचए (VHA) द्वारा आयोजित अध्ययन में 26,000 बुज़ुर्गों को शामिल किया गया, जिसमें वीएचए (VHA) सिस्टम में शामिल 10% बुज़ुर्गों का परीक्षण करने पर पता चल कि वे सभी हेपेटाइटिस सी से संक्रमित हैं.
कुल संख्या में से जो लोग हेपेटाइटिस सी एंटीबॉडी सकारात्मक पाए गए और जिनके प्रतिरक्षा सेवा में काफी समय बिताया था, उनमें से 62.7% के वियतनाम से होने का उल्लेख किया गया था. दूसरे सबसे बड़े समूह के रूप में बाद में वियतनाम में रहने वाले 18.2%, उसके बाद कोरियाई संघर्ष के 4.8%, कोरियाई संघर्ष के बाद के 4.3%, डबल्यूडबल्यूआईआई (WWII) से 4.2% और फारस की खाड़ी के 2.7% योद्धा शामिल थे.

रक्त उत्पाद[संपादित करें]

रक्त आधान, रक्त उत्पादों या अंग प्रत्यारोपण से पहले एचसीवी (HCV) की जांच (स्क्रीनिंग) का कार्यान्वयन (अमेरिका में यह 1992 से पूर्व की प्रक्रियाओं को उल्लेख करता है) हेपेटाइटिस सी के जोखिम कारकों में कमी लाता है.
पहली बार 1989 में हेपेटाइटिस सी वायरस जीनोम से सीडीएनए (cDNA) क्लोन पृथक किया गया था[16] लेकिन 1992 तक वायरस स्क्रीन के लिए विश्वसनीय परीक्षण उपलब्ध नहीं थे. इसलिए जो लोग एचसीवी (HCV) के लिए रक्त आपूर्ति की जांच के क्रियान्वयन से पहले रक्त या रक्त उत्पादों के संपर्क में आए हैं, उनके एचसीवी (HCV) वायरस से संक्रमित हो गये होंगे. रक्त उत्पादों में थक्के के कारक (हेमोफिलिएक्स से लिये गये), इम्यूनोग्लोबुलिन, रोगम, प्लेटलेट्स और प्लाज़्मा शामिल हैं. 2001 में रोग के नियंत्रण और रोकथाम केंद्र ने सूचना दी कि संयुक्त राज्य अमेरिका में कुल चढ़ाये गये एक लाख प्रति यूनिट में एचसीवी (HCV) संक्रमण होने का जोखिम केवल रक्त की एक इकाई जितना है.

इयाट्रोजेनिक चिकित्सा या दंत अरक्षितता[संपादित करें]

अपर्याप्त या अनुचित चिकित्सा या दंत उपकरणों के माध्यम से लोग एचसीवी (HCV) के संपर्क में आ सकते हैं. अनुचित ढंग से विसंक्रमित किये गये उपकरण दूषित रक्त का वहन कर सकते हैं जिनमें सुई या सिरिंजें, हेमोडायलिसिस उपकरण, मौखिक स्वच्छता उपकरण उपकरण और जेट एयर गन शामिल हैं. समयनिष्ठ और विसंक्रमण की उचित तकनीकों का अतिसतर्कतापूर्वक प्रयोग करके और प्रयोग में लाए गए उपकरणों को नष्ट कर एचसीवी (HCV) आयट्रोजेनिक का जोखिम कम करके शून्य तक पहुंचाया जा सकता है.

रक्त[संपादित करें]

अरक्षितता[संपादित करें]
व्यवसाय[संपादित करें]
चिकित्सा और दंत चिकित्सा कर्मी, (जैसे कि दमकल कर्मी, पैरामेडिक्स, आपातकालीन चिकित्सा तकनीशियन, कानून प्रवर्तन अधिकारी) पहले रेस्पोंडर्स हैं और सैन्य कर्मियों में आकस्मिक रूप से खून के संपर्क में आने से आकस्मिक सुइयों के माध्यम से आंखों या घावों पर खून के छींटों से एचसीवी (HCV) के संक्रमण आ सकते हैं. ऐसे आकस्मिक जोखिमों से बचने के लिए सार्वभौम सावधानियों के इस्तेमाल से एचसीवी (HCV) का जोखिम महत्वपूर्ण ढंग से कम हो जाता है.
मनोरंजन[संपादित करें]
संपर्क खेल और अन्य गतिविधियां जैसे कि "स्लैम नृत्य" आकस्मिक रूप से रक्त-से-रक्त का संपर्क कायम कर एचसीवी (HCV) को बढ़ावा देने वाला प्रमुख कारक है.[17]

यौन संपर्क[संपादित करें]

एचसीवी (HCV) का यौन संचरण शायद ही होता है. अध्ययन से पता चलता है कि विषमलैंगिकों में यौन संचरण का जोखिम एकल रिश्ते से एकदम कम या दुर्लभ हैं.[18][19] सीडीसी (CDC) लंबे समय से एकल पद वाले जोड़ों में कंडोम के इस्तेमाल की अनुशंसा नहीं करता है (जहां एक साथी सकारात्मक है और दूसरा नकारात्मक).[20] हालांकि हेपेटाइटिस सी की उच्च व्यापकता की वजह से यह छोटा सा जोखिम यौन मार्गों द्वारा संचरित मामलों को एक गैर तुच्छ संख्या में बदल सकता है. योनि छेदक सेक्स में संचरण का जोखिम कम होने की मान्यता है जबकि एनोजेनिटल मुकोसा के यौन संपर्क, जिसमें उच्च स्तर की मानसिक क्षति (गुदा की गहराई तक जाने वाले यौन संपर्क, मुट्ठी, यौन खिलौने का इस्तेमाल) संचरण का जोखिम उच्च स्तर का होता है.[21]

देह छेदन और गोदना (टैटूज़)[संपादित करें]

अगर उचित विसंक्रमण तकनीकों का पालन नहीं किया गया तो गोदना रंजक, दवात, स्टाइलेट्स और छेदने वाले औजारों से गुदवाने पर भी एचसीवी (HCV) संक्रमित खून एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक संचरित हो सकता है. 1980 के दशक के मध्य से पहले "भूमिगत" या गैर पेशेवर से गुदवाना या छेद कराना चिंता का विषय है क्योंकि ऐसी सेटिंग में रोगाणुहीन तकनीक अपर्याप्त हो सकते हैं जिससे बीमारी को फैलने से रोका जा सके; साझा तौर पर गोदने के संक्रमित उपकरणों (उदाहरण के लिए जेल व्यवस्था में)[22] के इस्तेमाल से एचसीवी का शिकार होने का जोखिम बढ़ता है. वास्तव में, यही कारण था जिसकी वजह से पामेला एंडरसन को आधिकारिक तौर पर कहना पड़ा था : "मैं अपने पूर्व पति टॉमी ली के साथ साझा तौर पर गोदने के लिए एक ही सुई का इस्तेमाल करके हेपटाइटिस सी का शिकार हुई." टॉमी को यह बीमारी थी और उन्होंने हमारी शादी के दौरान मुझे इस बारे में कभी नहीं बताया."[23] यू.एस. सेंटर्स फॉर डिजीज़ कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (U.S. Centers for Disease Control and Prevention) ने इस विषय पर कहा कि, "अनौपचारिक केंद्रों या संक्रमित उपकरणों से टैटूज़ बनाए जाने या शरीर छिदवाने पर हेपटाइटिस सी और अन्य संक्रामक रोगों का संचरण संभव है." इन जोखिमों के बावजूद, अनुमोदित सुविधाओं में टैटू बनवाने पर एचसीवी (HCV) संक्रमण का होना मुश्किल है.[24]

व्यक्तिगत सामानों का साझा इस्तेमाल[संपादित करें]

व्यक्तिगत देखभाल के सामानों जैसे कि रेज़र, टूथब्रश, छल्ली कैंची जैसे व्यक्तिगत देखभाल उपकरण और अन्य मैनीक्यूरिंग या पेडिक्यूरिंग उपकरणों से आसानी से खून दूषित हो सकता है. ऐसी चीज़ों का साझा इस्तेमाल करने पर एचसीवी (HCV) होने का जोखिम रहता है. ऐसी किसी भी हालत में जब नासूर जैसे घावों, सर्दियों के घावों, दांत साफ कराने के तुरंत बाद जिस स्थिति में खून बहता रहता है, चिकित्सा के वक्त उचित सावधानी बरतनी चाहिए.
सामान्य संपर्क करने जैसे कि जकड़ने, चुंबन लेने या एक साथ खाने या खाना पकाने के बर्तनों से एचसीवी (HCV) नहीं फैलता है.[25]

ऊर्ध्व संचरण[संपादित करें]

जन्म की प्रक्रिया के दौरान संक्रमित मां से बच्चे में प्रसारित होने वाले रोग के संचरण को ही ऊर्ध्व संचरण कहते हैं. मां से बच्चे में हेपेटाइटिस सी का संचरण अच्छी तरह से वर्णित किया गया है, लेकिन ऐसा अपेक्षाकृत कम होता है. प्रसव के समय जो महिलाएं एचसीवी आरएनए (HCV RNA) पॉजिटिव होती हैं उनमें ही संचरण होता है. ऐसी अवस्था में अनुमानतः 100 में से 6 को संचरण होने का खतरा होता है. प्रसव के समय जो महिलाएं एचसीवी (HCV) और एचआईवी (HIV) दोनों से पॉजिटिव होती हैं, उनमें 100 में से 25 में एचसीवी (HCV) के संचरण का जोखिम रहता है.
एचसीवी (HCV) के सीधे संचरण का खतरा प्रसव के तरीके या स्तनपान से जुड़ा हुआ नहीं दिखता है.

निदान[संपादित करें]

हेपेटाइटिस सी के संक्रमण के सरोलॉजिक प्रोफ़ाइल
"हेपेटाइटिस सी" का निदान उसके तीव्र चरण के दौरान मुश्किल से हो पाता है क्योंकि अधिकतर संक्रमित लोगों को रोग के इस चरण में कोई लक्षण अनुभव नहीं होता है. जो लोग तीव्र चरण के दौरान लक्षणों का अनुभव करते हैं वे इतने बीमार होते हैं कि चिकित्सा भी नहीं करा पाते. दीर्घकालिक हेपेटाइटिस सी के चरण का निदान भी बहुत चुनौतीपूर्ण है क्योंकि जब तक यकृत की बीमारी बढ़ नहीं जाती, इसके लक्षण उजागर नहीं होते हैं और ऐसा होने में कई दशक लग जाते हैं.
चिकित्सा के इतिहास (खासकर जब IV मादक द्रव्यों के दुरुपयोग या कोकीन जैसी सांस से लेने वाली दवा का प्रयोग किया गया हो), गोदना या छेद करवाने का इतिहास हो, अपरिभाषित लक्षण, असामान्य यकृत एंजाइम्स या नियमित रक्त परीक्षण के दौरान पाये गये परीक्षणों के आधार पर दीर्घकालिक हेपेटाइटिस सी होने का शक किया जा सकता है. आमतौर पर रक्तदान के मौकों और कॉनटेक्ट ट्रेसिंग पर (रक्त दाताओं की रक्त जनित अन्य बीमारियों के साथ-साथ हेपेटाइटिस के लिए भी खून की जांच की जाती है) हेपेटाइटिस सी की पहचान हो पाती है.
हेपेटाइटिस सी का परीक्षण रक्तजनित बीमारियों के रक्तपरीक्षण से शुरू होता है जो एचसीवी (HCV) का पता लगाने में काम आता है. संक्रमित होने के 15 हफ्तों के भीतर 80% रोगियों में, 5 महीने बाद > 90% में और 6 महीने बाद > 97% रोगियों में एचसीवी-विरोधी (Anti-HCV) प्रतिरक्षकों को पाया जा सकता है. कुल मिलाकर, एचसीवी (HCV) प्रतिरक्षक परीक्षण में हेपेटाइटिस सी वायरस से अरक्षितता के लिए मजबूत सकारात्मक भावी सूचक मूल्य है, लेकिन जिन रोगियों में अभी प्रतिरक्षक (सरोकॉन्वर्सन) विकसित नहीं हो पाये हैं या जिनमें अपर्याप्त स्तर के प्रतिरक्षक हों, वे छूट सकते हैं. कभी-कभार एचसीवी (HCV) से संक्रमित लोगों में वायरस से लड़ने के लिए प्रतिरक्षक विकसित नहीं हो पाते हैं. इसीलिए वे एचसीवी प्रतिरक्षक स्क्रीनिंग में सकारात्मक परीक्षण नहीं लाते हैं. इस संभावना की वजह से आरएनए (RNA) परीक्षण (नीचे न्यूक्लीक एसिड परीक्षण की प्रक्रिया देखें) पर विचार किया जाना चाहिए, जब प्रतिरक्षक परीक्षण नकारात्मक हो लेकिन हेपटाइटिस का जोखिम अधिक हो (जैसे कि किसी में सीधा संचरण होने पर हेपटाइटिस सी के जोखिम के कारकों में वृद्धि हो गयी हो). हालांकि, केवल यकृत के काम करने के परीक्षण के साधारण परिणाम से संक्रमण की गंभीरता या भविष्यवाणी कर लेना अक्लमंदी नहीं हैं क्योंकि यह यकृत की बीमारियों की संभावनाओं को खारिज नहीं करता है.[26]
एचसीवी-विरोधी (Anti-HCV) वायरस के जोखिम की ओर संकेत करता है लेकिन यह पता नहीं लग सकता कि संक्रमण मौजूद है या नहीं. सभी लोगों को जिनमें सकारात्मक एंटी-एचसीवी (anti-HCV) (प्रतिरक्षक) पाये गये हैं, उन्हें हेपेटाइटिस सी वायरस की उपस्थिति के लिए अतिरिक्त परीक्षण से गुजरना चाहिए ताकि यह पता लगाया जा सके कि वर्तमान में संक्रमण है या नहीं. वायरस की उपस्थिति का पता लगाने और आणविक न्यूक्लिक एसिड परीक्षण तरीकों के इस्तेमाल के लिए पोलीमरेज़ चेन प्रतिक्रिया पीसीआर (PCR), प्रतिलेखन मध्यस्थता प्रवर्धन टीएमए (TMA) या शाखायुक्त डीएनए (b-DNA) का परीक्षण किया गया. सभी एचसीवी (HCV) न्यूक्लिक एसिड आणविक परीक्षणों में न सिर्फ यह पता लगाने की क्षमता है कि वायरस मौजूद है या नहीं बल्कि उनमें रक्त (एचसीवी (HCV) वायरल लोड) में मौजूद वायरस की मात्रा मापने की भी क्षमता है). एचसीवी (HCV) वायरल लोड इंटरफेरॉन आधारित चिकित्सा की प्रतिक्रियाओं की संभावना को निर्धारित करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है लेकिन यह न तो बीमारी की गंभीरता का और न हीबीमारी के विकास का कोई संकेत देता है.
आमतौर पर एचसीवी (HCV) संक्रमण से पीड़ित लोगों में जीनोटाइप परीक्षण की सिफारिश की गयी है. एचसीवी (HCV) जीनोटाइप परीक्षण का इस्तेमाल इंटरफेरॉन आधारित उपचार के आवश्यक अरसे और संभावित प्रतिक्रिया का निर्धारण करने के लिए किया जाता है.

रोकथाम[संपादित करें]

रोग नियंत्रण केंद्र के मुताबिक हेपटाइटिस सी वायरस त्वचा या इंजेक्शन से अधिक मात्रा में खून के संपर्क में आने से फैलता है.[27]
  • इंजेक्शन से नशीली दवाओं का प्रयोग (वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका में एचसीवी (HCV) संचरण का सबसे आम जरिया है)
  • दान किये गये रक्त, रक्त उत्पादों और अंगों की प्राप्ति (पहले संयुक्त राज्य अमेरिका में संचरण एक आम जरिया था लेकिन 1992 में रक्त जांच उपलब्ध होने से दुर्लभ है).
  • स्वास्थ्य सेवा के दौरान सुई (नीडलस्टिक) के घाव
  • एचसीवी (HCV) संक्रमित मां से जन्म
एचसीवी (HCV) कभी-कभी इन माध्यमों से भी फैल सकता है
  • एचसीवी (HCV) संक्रमित व्यक्ति से यौन संपर्क (संचरण का एक अकुशल माध्यम)
  • संक्रमित खून से संदूषित निजी सामान जैसे कि रेज़र या टूथब्रश का साझा इस्तेमाल करने से (संचरण के अक्षम सदिश (वैक्टर))
  • अन्य स्वास्थ्य प्रक्रियाएं जिनमें आक्रामक तरीके शामिल हैं, जैसे कि इंजेक्शन (आमतौर पर महामारी के संदर्भ में मान्यता प्राप्त)
नई सुइयों और सिरिंजों के प्रावधान जैसी रणनीतियों और इंजेक्शन से दवा लेने की सुरक्षित प्रक्रियाओं की शिक्षा बड़े पैमाने पर इंजेक्शन से नशा करने वालों के बीच हेपटाइटिस सी को फैलने से रोकता है.
कोई भी टीका हेपटाइटिस सी के संपर्क में आने से न तो बचाता है और न ही इसके इलाज में मदद करता है. टीकों पर काम चल रहा है और कुछ ने उत्साहजनक परिणाम दिखाया है.[28]

उपचार[संपादित करें]

हेपेटाइटिस सी वायरस 50% से 80% संक्रमित व्यक्तियों में पुराने संक्रमण उभारता है. इनमें से लगभग 50% उपचार के दौरान कोई प्रतिक्रिया नहीं देते हैं. दीर्घकालिक एचसीवी (HCV) वाहकों में इस वायरस को खत्म करने का बहुत कम मौका होता है.(0.5% से 0.74% प्रति वर्ष)[29][30] हालांकि, दीर्घकालिक हेपटाइटिस सी के अधिकतर मरीजों में यह इलाज के बगैर खत्म नहीं होगा.

औषधि (इंटरफेरॉन और रिबावायरिन)[संपादित करें]

वर्तमान उपचार में हेपटाइटिस सी वायरस के जीनोटाइप के आधार पर पेगीलेटेड इंटरफेरॉन-अल्फा 2ए या पेगीलेटेड इंटरफेरॉन-अल्फा-2बी (ब्रांड का नाम पेगासीज़ या पीईजी-इंट्रोन) और एंटी वायरल दवा रिबावायरिन 24 से 48 सप्ताह तक दी जाती है. एक बड़े मल्टीसेंटर में व्यापक स्तर पर जीनोटाइप 2 या 3 संक्रमित मरीजों (नॉर्डीमेनिक)[31] में से जिन मरीजों का 12 सप्ताह से निगरानी में रखकर इलाज किया जा रहा था, सातवें दिन उनमें 1000 आईयू (IU)/मि.ली.(mL) से कम एचसीवी आरएनए प्राप्त किया था जो कि 24 सप्ताह से अधिक समय से इलाज किये जा रहे मरीजों की तुलना में अधिक था.[32][33]
एक व्यवस्थित समीक्षा और नियंत्रित परीक्षण के अनुसार रिबावायरिन पेगीलेटेड इंटरफेरॉन अल्फा 2बी की तुलना में पेगीलेटेड इंटरफेरॉन अल्फा-2ए औऱ रिबावायरिन देने से दीर्घकालिक हेपटाइटिस सी के मरीजों में वायरोलोजिकल प्रतिक्रिया अनवरत बढ़ सकती है.[34] सापेक्ष लाभ में 14.6% वृद्धि थी. एक ही तरह के जोखिम के मरीजों पर किये गये इस अध्ययन में (41.0% ने पेगीलेटेड इंटरफेरॉन अल्फा 2ए प्लस रिबावायरिन न दिये जाने पर निरंतर वायरस संबंधित प्रतिक्रिया दी है) पूर्ण लाभ को 6% बढ़ता पाया गया है. 16.7 रोगियों को एक इलाज का फायदा मिलना चाहिए (उपचार के लिए आवश्यक संख्या = 16.7. मरीजों के निरंतर वायरोलॉजिकल प्रतिक्रिया के जोखिम की कमी और अधिकता को जानने के लिए इन परिणामों को व्यवस्थित करने के लिए यहां क्लिक करें) हालांकि, इस अध्ययन के परिणाम अनिश्चित और सामयिक संपर्क और चयनात्मक खुराक की प्रतिक्रिया की वजह से पक्षपाती हो सकते हैं.
आमतौर पर हेपटाइटिस सी वायरस से संक्रमित और लगातार असामान्य ढंग से कार्य कर रहे यकृत के परीक्षण वाले मरीजों के लिए इलाज की सिफारिश की जाती है.
तीव्र संक्रमण वाले चरण में छोटी अवधि के उपचार से भी उच्च दर की सफलता (90% से अधिक) प्राप्त हुई है, लेकिन इस इलाज के बिना भी 15-40% मामलों में सहज निकासी से इसे संतुलित किया जाना चाहिए (ऊपर तीव्र हेपेटाइटिस सी का अनुभाग देखें).
प्रारंभ में कम विषाणुजनित भार वाले मरीज अधिक विषाणुजनित भार वाले मरीजों की तुलना में इलाज में बेहतर प्रतिक्रिया देते हैं. (400,000 आईयू (IU)/मि.ली.(mL) से अधिक). वर्तमान संयोजन चिकित्सा आमतौर पर जठरांत्र विज्ञान, हेप्टोलोजी या संक्रामक रोग जैसे क्षेत्रों के चिकित्सकों की देखरेख में की जाती है.
अतीत में दवा या अल्कोहल का अत्यधिक दुरुपयोग कर चुके लोगों के लिए यह इलाज कराना शारीरिक तौर पर बहुत मुश्किल होता है. कुछ मामलों में इससे अस्थायी विकलांगता भी हो सकती है. रोगियों का एक अच्छे अनुपात को 'फ्लू-जैसे' सिंड्रोम (सबसे अधिक आम, इंटरफेरॉन के साप्ताहिक इंजेक्शन दिए जाने के बाद कुछ दिन तक) से लेकर एनीमिया, हृदय की समस्यायें एवं आत्महत्या या आत्महत्या के विचार आदि मनोविकारी समस्याओं जैसे पार्श्विक प्रभावों का अनुभव होगा. बाद की समस्याएं मरीज द्वारा अनुभव किये जाने वाले सामान्य शारीरिक तनाव की वजह से बढ़ जाती हैं.

जीनोटाइप द्वारा चिकित्सा दर[संपादित करें]

जीनोटाइप द्वारा भिन्न प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं. (संयुक्त राज्य अमेरिका में हेपेटाइटिस सी के लगभग 80% रोगियों में जीनोटाइप 1 है. मध्य पूर्व और अफ्रीका में जीनोटाइप 4 आम है.)
जीनोटाइपविवरण
2 और 3एचसीवी (HCV) जीनोटाइप 2 और 3 युक्त लोगों में 24 सप्ताह के उपचार के साथ 75% या बेहतर निरंतर रोगमुक्ति दर (निरंतर विषाणुजनित प्रतिक्रिया) देखी गयी है.[35] 7वें दिन तक (यानी पेगीलेटेड इंटरफेरॉन की दूसरी खुराक के ठीक पहले)1000 IU/mL से कम एचसीवी आरएनए (HCV RNA) प्राप्त रोगियों का निरंतर रोगमुक्ति दर सहित 12 हफ्तों से भी कम इलाज किया जा सकता है[36].
148 हफ्तों के उपचार से एचसीवी (HCV) जीनोटाइप 1 युक्त रोगियों में लगभग 50% निरंतर प्रतिक्रिया प्राप्त होती है. एचसीवी (HCV) जीनोटाइप 1 युक्त रोगियों में, यदि पेगीलेटेड इंटरफेरॉन + रिबावायरिन से उपचार द्वारा 12 सप्ताह के बाद 2-लॉग विषाणुजनित भार (वायरल लोड) में कमी या आरएनए (RNA) ("शीघ्र विषाणुजनित प्रतिक्रिया" कहा जाता है) की पूरी निकासी नहीं हो पाती है तो इस उपचार की सफलता की सम्भावना 1% से कम रहती है.
4जीनोटाइप 4 युक्त व्यक्तियों में 48 हफ्तों के इलाज से लगभग 65% निरंतर प्रतिक्रिया पाई जाती है.
6वर्तमान समय में जीनोटाइप 6 की बीमारी में इलाज के सबूत विरल हैं और जो सबूत मौजूद है वह जीनोटाइप 1 रोग के लिए उपयोग की जाने वाली खुराक द्वारा 48 सप्ताह का उपचार है.[37] छोटी अवधि (जैसे, 24 सप्ताह) के उपचार पर विचार करने वाले चिकित्सकों को एक नैदानिक परीक्षण के संदर्भ में ही ऐसा करना चाहिए.
गैर जीनोटाइप 1 रोगियों में प्रारंभिक विषाणुजनित प्रतिक्रिया आम तौर पर परीक्षित नहीं है क्योंकि इसे प्राप्त करने की संभावना 90% से अधिक हैं. इलाज की व्यवस्था पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, क्योंकि निरंतर विषाणुजनित प्रतिक्रिया प्रकट करने वाले रोगियों के यकृत और सतही एक नाभिकीय रक्त कोशिकाओं में भी प्रतिकृति बनाने वाले सक्रिय वायरस पाए जाते हैं.[38]

रोगियों को प्रभावित करने वाले विशेष कारक[संपादित करें]

मेजबान कारक[संपादित करें]

पेगीलेटेड इंटरफेरॉन अल्फा-2ए या पेगीलेटेड इंटरफेरॉन अल्फा-2बी (ब्रांड नाम पेगासिस या पेग-इंट्रान) के साथ रिबावायरिन से इलाज किये जाने वाले जीनोटाइप 1 हेपेटाइटिस सी में देखा गया है कि मानवीय आईएल28बी (IL28B) जीन के पास आनुवंशिक बहुरूपताओं के संकेतन इंटरफेरॉन लम्बाडा 3, उपचार की प्रतिक्रिया के प्रति महत्वपूर्ण अंतर के साथ जुड़े रहे हैं. मूल प्रकृति में सूचित[39] इस खोज ने दर्शाया है कि आईएल28बी (IL28B) जीन के पास कुछ विशेष आनुवंशिक भिन्न युग्‍मविकल्‍पी युक्त जीनोटाइप 1 हेपेटाइटिस सी के रोगी उपचार के बाद निरंतर विषाणुजनित प्रतिक्रिया प्राप्त करने में दूसरों की तुलना में अधिक सक्षम होते हैं. प्रकृति[40] की रिपोर्ट ने प्रदर्शित किया है कि एक ही आनुवंशिक भिन्नता जीनोटाइप 1 हेपेटाइटिस सी वायरस की प्राकृतिक स्वीकृति के साथ भी जुडी है.
इसी प्रकार जीनोटाइप 1 या 4 के हेपेटाइटिस सी वायरस एचसीवी (HCV) द्वारा दीर्घकाल से संक्रमित मरीज, जो विषाणु प्रतिरोधक उपचार के पूरा होने के बाद एक निरंतर विषाणुजनित प्रतिक्रिया एसवीआर (SVR) हासिल नहीं कर पाते, उनमें आधारभूत उपचार पूर्व प्लाज्मा स्तर आईपी-10 IP-10 (सीएक्ससीएल-10 CXCL10 के रूप में भी जाना जाता है) उन्नत पाया जाता है.[41][42] . प्लाज्मा में आईपी-10 (IP-10) उपचार में शामिल आईपी-10 एमआरएनए (IP-10 mRNA) द्वारा प्रतिबिम्बित है और दोनों आश्चर्यजनक ढंग से सभी एचसीवी जीनोटाइपों के लिए इंटरफेरॉन/रिबावायरिन उपचार के दौरान एचसीवी (HCV) आरएनए (RNA) के शुरूआती दिनॉ के उन्मूलन ("प्रथम चरण अस्वीकृत") की भविष्यवाणी करते हैं[43].

विषाणु कारक[संपादित करें]

वायरल जीनोटाइप के इलाज में पाये जाने वाली विभिन्न प्रतिक्रियाओं के आधार पर अभी भी काम किया जा रहा है. मूल आर्गिनाइन70ग्लुटामाइन (R70Q) और नॉन स्ट्रक्टरल प्रोटीन 5ए में इनकी इंटरफेरॉन संवेदनशीलता निर्धारक क्षेत्र के अन्दर होने वाले उत्परिवर्तन को क्रमशः 12 और 4 सप्ताह में प्रतिक्रियाशीलता से संबद्ध किया गया है.[44]

गर्भावस्था और स्तनपान[संपादित करें]

यदि किसी गर्भवती महिला में हेपटाइटिस सी के खतरे की संभावना हो तो उसका एचसीवी (HCV) के खिलाफ प्रतिराक्षकों के लिए परीक्षण किया जाना चाहिए. एचसीवी (HCV) संक्रमित महिलाओं के नवजात बच्चों में तकरीबन 4% संक्रमित हो जाते हैं. ऐसा कोई इलाज नहीं है जो इसे होने से रोक दे. पहले 12 महीनों में बच्चों में एचसीवी (HCV) से छुटकारा पाने की संभावना अधिक रहती है.
एक माता जो एचआईवी से भी संक्रमित हो, उसमें संचरण की दर 19% से अधिक हो सकती है. वर्तमान में ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है जिससे पता लगाया जा सके कि विषाणु प्रतिरोधक चिकित्सा से प्रसवकालीन संचरण को कम किया जा सकता है या नहीं. गर्भावस्था के दौरान इंटरफेरॉन और रिबावायरिन प्रतिदिष्ट हैं. हालांकि, झिल्लियों के फटने के बाद खोपड़ी की खाल को घातक प्रबोधन और लंबे समय तक प्रसव पीड़ा से बचाना शिशु में संचरण के जोखिम को कम कर सकते हैं.
मां से बच्चे में संचरित एचसीवी (HCV) प्रतिरक्षक 15 महीने की उम्र तक रह सकता है. यदि शीघ्र निदान वांछित हो तो 2 से 6 महीने की उम्र के बीच एचसीवी आरएनए (HCV RNA) के लिए परीक्षण कराया जा सकता है एवं पहले परीक्षण के परिणाम के बाद स्वतंत्र रूप से दुबारा परीक्षण किया जा सकता है. अगर बाद में निदान पसंद है तो 15 महीनों की उम्र के बाद एक एचसीवी-विरोधी (anti-HCV) परीक्षण कराया जा सकता है. जन्म के समय HCV से संक्रमित अधिकांश शिशुओं में कोई लक्षण नहीं होते हैं और वे बचपन अच्छी तरह से व्यतीत करते हैं. ऐसा कोई सबूत नहीं है कि स्तनपान से एचसीवी (HCV) फैलता है. सतर्कता के लिए, एक संक्रमित मां को स्तनाग्र में दरार होने या उनसे खून बहने की स्थिति में स्तनपान नहीं कराना चाहिए.[45]

अतिरिक्त सिफारिशें और वैकल्पिक चिकित्सा[संपादित करें]

वर्तमान दिशा निर्देशों की जोरदार अनुशंसा है कि हेपेटाइटिस सी के रोगियों को, अगर वे अभी तक इन वायरस के प्रति अनावृत हों तो, हेपेटाइटिस ए और बी के लिए टीके लगाए जाने चाहिए क्योंकि एक दूसरे वायरस के संक्रमण से उनके यकृत की बीमारी और खराब हो सकती है.
नशीले पेय पदार्थों का सेवन फाइब्रोसिस और सिरोसिस से जुड़े एचसीवी (HCV) को बढ़ा सकता है और यकृत का कैंसर होने की संभावना और अधिक हो सकती है; इसी प्रकार हेपाटिक रोग का निदान इंसुलिन प्रतिरोध और उपापचयी सिंड्रोम को और खराब कर सकता है. इसके भी सबूत हैं कि धूम्रपान से फाइब्रोसिस (दाग़) की दर बढ़ जाती है.
कईवैकल्पिक चिकित्साएं वायरस के इलाज के बजाय यकृत की कार्यक्षमता को व्यवस्थित करने की ओर लक्षित हैं, जिससे जीवन की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए इस रोग की गति को धीमा किया जा सके. उदाहरण के रूप में, सिलिबम मारियानम और शो-साइको-तो (Sho-saiko-to) के सत्व को उनके एचसीवी (HCV) सम्बंधित प्रभावों के लिए बेचा जाता है, कहा जाता है कि इनमें पहला यकृत के कार्यों में कुछ सहायता करता है और दूसरा यकृत के स्वास्थ्य में सहायक है तथा विषाणु प्रतिरोधक प्रभाव उपलब्ध करता है.[46]. किसी भी वैकल्पिक चिकित्सा का कोई प्रमाण योग्य ऐतिहासिक या विषाणु विषयक लाभ प्रदर्शन कभी भी प्रदर्शित नहीं किया जा सका है.

जानपदिकरोग विज्ञान (एपिडेमियोलॉजी)[संपादित करें]

दुनिया भर में हेपेटाइटिस सी (1999, की व्याप्तता डब्ल्यूएचओ)
विकलांगता से समायोजित हेपेटाइटिस सी के लिए 100.000 निवासियों के प्रति जीवन के वर्ष. [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93]
यह अनुमान है कि दुनिया भर में लगभग 200 मिलियन लोग हेपेटाइटिस सी से संक्रमित हैं और प्रति वर्ष 3-4 लाख से अधिक लोग इससे संक्रमित होते हैं.[47][48]संयुक्त राज्य अमेरिका में एक साल में लगभग 35,000 से 185,000 नए मामले सामने आये हैं. वर्तमान में यह सिरोसिस का प्रमुख और हेपाटोसेल्यूलर कार्सिनोमा का आम कारण है. इसके फलस्वरुप यह अमेरिका में यकृत प्रत्यारोपण का प्रमुख कारण बन गया है. एचआईवी (HIV) सकारात्मक (पॉज़िटिव) आबादी में एचआईवी का सह-संक्रमण आम है और दर भी अधिक रहती है. संयुक्त राज्य अमेरिका में हर साल एचसीवी (HCV) से 10,000-20,000 मौतें होती हैं. इस मृत्यु दर में वृद्धि होने की आशंका है क्योंकि जो एचसीवी (HCV) परीक्षण के पहले आधान की वजह से संक्रमित हुए उनकी संख्या स्पष्ट हो गयी थी. कैलिफोर्निया में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार जेल के कैदियों में से 34% तक में इसकी मौजूदगी का पता चला है;[49] हेपेटाइटिस सी के निदान वाले 82% लोग पहले जेल जा चुके थे,[50] और संक्रमण का समय जेल में रहने के दौरान वर्णित है.[51]
अफ्रीका और एशिया के कुछ देशों में अधिक व्यापकता है.[52] मिस्र में एचसीवी (HCV) की व्यापकता उच्चतम, कुछ क्षेत्रों में 20% तक है. यह अवधारणा है कि सिसटोसोमियासिस के लिए अब समूह इलाज का प्रचार बंद हो जाने की वजह से ही यह बीमारी फैल रही है जो उस देश में स्थानिक है.[53] यह महामारी चाहे जैसे भी शुरू हुई हो, मिस्र में इयाट्रोजेनिकली और समुदाय और परिवार के भीतर दोनों ही तरह से एचसीवी (HCV) का उच्च दर पर संचरण जारी है.

एचआईवी के साथ सह-संक्रमण[संपादित करें]

संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 350,000 या 35% मरीज जो एचआईवी से संक्रमित हैं, वे हेपेटाइटिस सी वायरस से भी संक्रमित हैं. इसकी मुख्य वजह यह है कि दोनों ही वायरस रक्त जनित हैं और एक जैसी आबादी में मौजूद रहते हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका में एचसीवी (HCV) दीर्घकालीन जिगर की बीमारी का मुख्य कारण है. नैदानिक अध्ययन से स्पष्ट हो गया है कि एचआईवी संक्रमण बहुत तेजी से दीर्घकालीन हेपेटाइटिस सी से लेकर सिरोसिस और यकृत विफलता का कारण बनता जा रहा है. यह नहीं कहा जा सकता कि उपचार सह-संक्रमण के साथ रहने वाले लोगों के लिए एक विकल्प नहीं है.
21 एचआईवी सह-संक्रमित रोगियों (डाइको)(DICO)[54] पर किये गए एक अध्ययन में आईपी-10 के उपचार पूर्व आधारभूत प्लाज्मा स्तर ने एचसीवी (HCV) जीनोटाइप 1-3[55] के लिए इंटरफेरॉन/रिबावायरिन उपचार ("पहले चरण के गिरावट") के आरंभिक दिनों के दौरान एचसीवी आरएनए (HCV RNA) में गिरावट की भविष्यवाणी की, जैसा कि एचसीवी (HCV) मोनो-संक्रमित रोगियों के मामले में भी होता है.[41][42][43] चिकित्सा पूर्व 150 पीजी/मिली (Pg/ml). से नीचे का आईपी-10 (IP-10) स्तर एक अनुकूल प्रतिक्रिया का संकेत करता है और इस तरह यह अन्य प्रकार से इलाज आरंभ करने में परेशानी वाले रोगियों को उत्साहित करने में उपयोगी हो सकता है[55].

इतिहास[संपादित करें]

1970 के दशक के मध्य में, नैशनल इन्स्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ (National Institutes of Health) के रक्त आधान विभाग में संक्रामक रोग विभाग के प्रमुख हार्वे जे. आल्टर और उनके अनुसन्धान समूह ने अपने शोध से यह साबित किया कि आधान के बाद के अधिकतर हेपेटाइटिस मामले हेपेटाइटिस ए या बी वायरसों की वजह से नहीं होते थे. इस खोज के बावजूद, अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान प्रयासों द्वारा शुरुआत में गैर-ए, गैर-बी हेपेटाइटिस एनएएऩबीएच (NANBH) कहे जा रहे वायरस को पहचानने की कोशिश अगली सदी के लिए नाकाम रही. 1987 में, माइकल हफटन, क्वि-लिम चू और जॉर्ज क्वो ने चिरॉन कार्पोरेशन में सीडीसी (CDC) के डॉ डी.डब्ल्यू.ब्राडली के साथ मिलकर अज्ञात जीव को पहचानने के लिए आण्विक क्लोनिंग का उपयोग किया.[56] 1988 में, आल्टर ने एऩएएनबीएच (NANBH) के नमूनों के पैनल में इसकी मौजूदगी को देखते हुए इस वायरस के होने की पुष्टि की. 1989 के अप्रैल में इस वायरस की खोज के बाद इसका नया नाम हेपेटाइटिस सी वायरस, एचसीवी (HCV)साइंस के जर्नल में दो लेखों में प्रकाशित हुआ था.[57][58]
चिरॉन ने वायरस और उसके निदान पर कई पेटेंट दायर किये.[59] सीडीसी द्वारा दायर प्रतिस्पर्धी पेटेंट आवेदन को 1990 में उस समय ख़ारिज कर दिया गया जब चिरॉन ने सीडीसी को 1.9 करोड़ डॉलर और ब्राडली को 337,500 डॉलर का भुगतान किया. 1994 में ब्राडली ने पेटेंट रद्द करने के लिए चिरॉन पर मुकदमा दायर कर दिया, जिसने खुद को सह-आविष्कारक के रूप में शामिल किया और नुकसान के साथ रॉयल्टी की आय प्राप्त करते हैं. अदालत में हारने के बाद 1998 में उसने मामला वापस ले लिया.[60][61]
2000 में डा. ऑल्टर और हफटन को नैदानिक चिकित्सा अनुसंधान के लिए लास्कर अवार्ड से सम्मानित किया गया, "हेपेटाइटिस सी जैसी बीमारी फैलाने वाले वायरस की खोज करने जैसा अग्रणी काम और स्क्रीनिंग के तरीकों में विकास किया, जिसकी वजह से अमेरिका में जहां 1970 में रक्त के आधान की वजह से होने वाले हेपेटाइटिस के 30% मामले 2000 में घटकर सीधे शून्य तक पहुंच गये."[62]
2004 में चिरॉन के पास 20 देशों में हेपेटाइटिस सी से जुड़े 100 पेटेंट थे और उन्होंने उल्लंघन करने पर कई कंपनियों के खिलाफ मामले दायर कर सफलता हासिल की थी. वैज्ञानिकों और प्रतियोगियों ने शिकायत दर्ज की है कि कंपनियां अपनी प्रौद्योगिकी के लिए बहुत अधिक पैसों की मांग करके हेपेटाइटिस सी के खिलाफ लड़ाई में अड़चनें डाल रही हैं.[60]

अनुसंधान[संपादित करें]

रीबावायरिन की जगह वीरामिडाइन एक वैकल्पिक दवा है, जिससे यकृत को फायदा पहुंचता है और निर्धारित खुराक दिये जाने पर हेपेटाइटिस सी के खिलाफ अधिक प्रभावी हो सकती है, यह अभी प्रयोगात्मक परीक्षण के III चरण में है. इसका प्रयोग इंटरफेरॉन के साथ संयोजन में किया जायेगा, जैसा रीबावायरिन के लिए किया जाता था.[disambiguation needed] हालांकि, इस दवा के रीबावायरिन के प्रतिरोधी उपभेदों में प्रभावी होने की उम्मीद नहीं है, जो पहले ही संक्रमण के समय रीबावायरिन/इंटरफेरॉन उपचार में काम नहीं आया और असफल रही.
कुछ नयी दवाओं का विकास हो रहा है जैसे द प्रोटीज़ इनहिबिटर्स (जिनमें टेलाप्रेवीर/वीएक्स (VX) 950 शामिल है) एन्ट्री इन्हीबिटर्स (जैसे कि एसपी 30 (SP 30) और आईटीएक्स 5061[63] (ITX 5061)) तथा पोलिमिरेज़ इन्हीबिटर्स (जैसे कि आरजी7128 (RG7128), पीएसआई-7977 (PSI-7977) और एनएम 283 (NM 283)), लेकिन इनमें से कुछ का विकास अपने प्रारंभिक चरणों में हैं. वीएक्स वीएक्स 950 (VX 950) जो टेलाप्रेवीर[64] के नाम से भी जाना जाता है, फिलहाल अपने परीक्षण के तीसरे चरण में है.[65][66] एक प्रोटीज़ इन्हीबिटर बीआईएलएन 2061 (BILN 2061) को नैदानिक परीक्षण के आरम्भ में सुरक्षा कारणों से बंद करना पड़ा था. एचसीवी (HCV) के उपचार में मदद करने वाली कुछ अधिक आधुनिक नयी दवाओं के नाम हैं अलबुफेरोन[67] और जडाक्सिन[68]. हेपेटाइटिस सी के लिए एनटीसेन्स फॉस्फोरोथिओट ओलिगोस को लक्षित किया गया है.[69] एनटीसेन्स मोरफोलिनो ओलिगोस ने पूर्व नैदानिक अध्ययन[70] में सम्भावना प्रकट की है, हालांकि, इन्हें विषाणु जनित भार को सीमित करने में कमी आयी थी.
हेपेटाइटिस सी वायरस के खिलाफ इम्यूनोग्लोबुलिन्स मौजूद हैं और इसके नए प्रकार पर काम चल रहा है. अभी तक उनकी भूमिका स्पष्ट नहीं हो पायी है क्योंकि अभी तक वे दीर्घकालिक संक्रमण को खत्म करने या तेजी के साथ उसकी रोकथाम में कोई भूमिका नहीं निभा पाये हैं (उदाहरण के लिए सुइयां). जिन मरीजों का प्रत्यारोपण हुआ है, उन मामलों में उनकी सीमित भूमिका है.
कुछ अध्ययनों में बताया गया है कि इंटरफेरॉन और रिबावायरिन द्वारा मानक उपचार के साथ ही जब विषाणु प्रतिरोधक दवा एमांटाडाइन (सीमेट्रेल) भी दिया जाता है, तब अधिक सफलता मिलती है. कभी कभी इसे "ट्रिपल थेरपी" भी कहते हैं. इसमें दिन में दो बार 100 मिलीग्राम एमांटाडाइन की खुराक शामिल होती है. अध्ययनों से पता चलता है कि यह "प्रतिक्रिया न देने वाले" मरीजों के लिए विशेष तौर पर उपयोगी साबित हो सकता है, जिन्हें पहले सिर्फ इंटरफेरॉन और रिबावायरिन के इलाज से कोई फायदा नहीं पहुंचा था.0/} वर्तमान में हेपटाइटिस सी के इलाज के लिए अमांटडीन अनुमोदित नहीं है. अब अध्ययनों से यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि यकृत खराब होने की स्थिति में कब इससे मरीज को फायदा पहुंच सकता है और कब नुकसान हो सकता है.