शनिवार, 16 अगस्त 2014

सांस्कृतिक दरिद्रता का प्रदेश

सांस्कृतिक दरिद्रता का प्रदेश
               आज से बीस पच्चीस साल पहले के हरयाणा की तस्वीर कुछ और थी मगर आज की तस्वीर बहुत बदल चुकी है । और तेजी के साथ बदलती  रही है ।  पुरुष द्वारा गांव में हाथ  से मेहनत करने की प्रवृति   बहुत कम हुई है। इन सालों  में  वैश्वीकरण और उदारीकरण की विकस्कारी या कहें विनाशकारी प्रक्रिया अपने ताश के पत्ते खोलने शुरू कर दिए हैं । यह सब इतनी तेजी से हो रहा है कि इसे ठीक ठीक ढंग से और सही तरीके से  पाना व् समझ पाना बहूत ही मुस्किल होता जा रहा है । नए उपनिवेशवादी और स्थानीय साम्प्रदायिक  ताकतों के गठजोड़ के बुलडोजर ने अपने करतब दिखाने शुरू कर दिए हैं । हमारे ढेर सारे प्राकृतिक संसाधनों तथा सामाजिक सांस्कृतिक जीवन को अपने काबू में करके अपने मनमाने ढंग से इन संसाधनों  को लूटने की कोशिशें दिनोंदिन बढ़ती जा  हैं ।  विश्व बैंक ,डब्ल्यू टी ओ तथा बहुराष्ट्रीय निजी निगमों की धुनों पर पहले तो केंद्र सरकार ही नाचती थी अब राज्य सरकारें भी इनके  इशारों पर नाचने लगी हैं तथा कंट्रैक्ट फार्मिंग , खुली मंडी तथा लैंड शेयर की वकालत कर रही हैं ।
                    हरयाणा एक कृषि प्रधान प्रदेश रहा है ।  राज्य सरकारों के समर्थन और सुरक्षा के माहौल में यहाँ के किसान और खेत में काम करने वाले मजदूर ने अपने खून पसीने  से हरित क्रांति के दौर में खेती की पैदावार को एक हद तक बढ़ाया । इसी दौर में सड़कों और बिजली का विस्तार हुआ । हालाँकि इस मॉडल की सीमायें भी जल्दी ही सामने आने लगी थी ।  हरित क्रांति के कारण हरयाणा के एक तबके में संम्पन्नता आयी मगर ज्यादा बड़ा हिस्सा इसके फल प्राप्त नहीं कर सका । जब राज्य  के समर्थन और सुरक्षा के ताने बाने की यहाँ के  मजदूर को सबसे ज्यादा जरूरत   थी , उस वक्त यह समर्थन और सुरक्षा का  ताणा बाणा टूट गया है या जान पूछ कर तोड़ दिया गया है जिसके कारण हरयाणा में कृषि का ढांचा  बैठने  है । खास ध्यान देने   वाली बात यह है कि इस ढांचे को बचने के नाम पर जो नयी कृषि नीति या आयात नीति परोसी जा रही है उसके पूरी तरह लागू होने के बाद आने वाले वक्तों में ग्रामीण आमदनी , रोजगार , मजदूरी और खाद्य सुरक्षा की हालत बहुत भयानक रूप धारण करने जा रही है । दूसरी तरफ यदि गौर करें तो सेवा क्षेत्र में छंटनी और असुरक्षा का आम माहौल बनता जा रहा है । कई हजार कर्मचारियों के सिर पर छंटनी की तलवार चल चुकी है और भी कई हजारों के सिर पर लटक रही है । सैंकड़ों फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं , बहुत से कारखाने पलायन करके दुसरे प्रदेशो में चले गए हैं तथा छोटे कारोबार चौपट हो रहे हैं ।  संगठित क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है और असंगठित क्षेत्र का तेजी से विस्तार हो रहा है जिसमें माइग्रेटिड लेबर का बड़ा हिस्सा शामिल  है । शिक्षा और स्वास्थ्य  के क्षेत्र में बाजार व्यवस्था का लालची व विनाशकारी खेल सबके सामने अब आना शुरू हो गया है । जो ढांचे हरयाणा के समाज ने अपने खून पसीने की कमाई से खड़े किये थे उनको तहस नहस करने या बेचने की मुहीम तेज होती जा रही है । आम  आदमी का अलिय नेशन बढ़ रहा है ।
           हरयाणा के जीवन के आगामी मानचित्र में गरींब और कमजोर तबकों , दलितों , युवाओं , और खासकर महिलाओं का अशक्तीकरण तेजी से बढ़ने वाला है । इन तबकों का और भी हाशिये पर धकेला जाना साफ़ साफ़ उभरकर आ रहा है और और भी ज्यादा उभर कर आने वाला है । इन तबकों का अपनी जमीं से उखड़ने , उजड़ने व उनके दरिद्रीकरण का विानाशकारी दौर शुरू हो चूका है । यह और तेज होने वाला है । पढ़े लिखे लोगों में महिला पुरुष लिंग अनुपात अनपढ़ों के मुलाबले ज्यादा शोचनीय है । शिक्षित ,अशिक्षित और अर्धशिक्षित युवा  लड़के लड़कियां मारे मारे घुमते फिर रहे हैं । एक तरफ बेरोजगारी की मार दूसरी तरफ अंध उपभोग्तावाद की लंपट संस्कृति का  अंधाधुंध प्रचार है । इनके बीच में घिरे ये युवक लंपटीकरण  का शिकार तेजी से होते जा रहे हैं । स्थगित रचनात्मक ऊर्जा से भरे युवाओं को हफ्ता वसूली , नशाखोरी , अपराध , और दलाली के  फूलते कारोबार अपनी तरफ तेजी से खींच रहे हैं । कई किस्म के माफिया गिरोह और संगठित अपराध तंत्र उभरते जा रहे हैं । इनको शासक राजनीती का तथा नौकर शाही का भी संरक्षण प्राप्त है ।
            पिछले सालों   में  आई  छद्म संम्पन्नता सुख भ्रान्ति और नए नए  तबकों -- पर जीवियों , मुफ्तखोरों और कमिशनखोरों  की गुलछर्रे उड़ाने की अय्याश संस्कृति तेजी से उभरी है । नयी नयी कारें , कैसीनो , पोर्नोग्राफी ,नंगी फ़िल्में , घटिया कैसेट , जातिवादी साम्प्रदायिक  विद्वेष , युद्धोन्माद , और स्त्री द्रोह के लतीफे चुटकलों से भरे हास्य कवि सम्मेलन , फूहड़ रागनियों व नाटको के साथ साथ सी डी , हरयाणवी पॉप , साइबर
सैक्स शॉप्स इन तबकों की सांस्कृतिक दरिद्रता को दूर करने के लिए अपनी जगह बनाते जा रहे है । धींगा मस्ती, कुनबापरस्ती ,जात गोत  वाद  , गरीबों की बेदखली , शामलात जमीनों पर कब्जे , स्त्रियों से छेड़छाड़ , बलात्कार और हत्या , बेहयाई , और मौकापरस्ती के मूल्य यहाँ के इन तबकों की राजनितिक , सामाजिक व सांस्कृतिक जीवन की पहचान बन गए हैं । इन तबकों के फतवे ही चलते हैं । इन तबकों की वर्चश्ववादी यह दरिद्र संस्कृति हरयाणा के सामाजिक पिछड़े पण आर टिकी है । 

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