शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

हेपेटाइटिस सी का इलाज

हेपेटाइटिस सी का इलाज

हेपेटाइटिस सी एक संक्रामक रोग है जो हेपेटाइटिस सी वायरस एचसीवी (HCV) की वजह से होता है और यकृत को प्रभावित करता है.[1] इसका संक्रमण अक्सर स्पर्शोन्मुख होता है लेकिन एक बार होने पर दीर्घकालिक संक्रमण तेजी से यकृत (फाइब्रोसिस) के नुकसान और अधिक क्षतिग्रस्तता (सिरोसिस) की ओर बढ़ सकता है जो आमतौर पर कई वर्षों के बाद प्रकट होता है. कुछ मामलों में सिरोसिस से पीड़ित रोगियों में से कुछ को यकृत कैंसर हो सकता है या सिरोसिस की अन्य जटिलताएं जैसे कि यकृत कैंसर[1] और जान को जोखिम में डालने वाली एसोफेजेल वराइसेस तथा गैस्ट्रिक वराइसेस विकसित हो सकती हैं.
हेपेटाइटिस सी वायरस रक्त से रक्त के संपर्क द्वारा फैलता है. शुरुआती संक्रमण के बाद अधिकांश लोगों में, यदि कोई हों, तो बहुत कम लक्षण होते हैं, हालांकि पीड़ितों में से 85% के यकृत में वायरस रह जाता है. इलाज के मानक देखभाल जैसे कि दवाइयों, पेजिन्टरफेरॉन और रिबावायरिन से स्थायी संक्रमण ठीक हो सकता है. इकावन प्रतिशत से ज्यादा पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं. जिन्हें सिरोसिस या यकृत कैंसर हो जाता है, उन्हें यकृत के प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है तथा प्रत्यारोपण के बाद ही वायरस पूरी तरह से जाता है.
एक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में 270-300 मिलियन लोग हेपेटाइटिस सी से संक्रमित हैं. हेपेटाइटिस सी पूरी तरह से मानव रोग है. इसे किसी अन्य जानवर से प्राप्त नहीं किया जा सकता है न ही उन्हें दिया जा सकता है. चिम्पांजियों को प्रयोगशाला में इस वायरस से संक्रमित किया जा सकता है लेकिन उनमें यह बीमारी नहीं पनपती है, जिसने प्रयोग को और मुश्किल बना दिया है. हेपेटाइटिस सी के लिए कोई टीका उपलब्ध नहीं है. हेपेटाइटिस सी की मौजूदगी (मूलतः "नॉन-ए (Non-A) नॉन-बी (Non-B) हेपेटाइटिस") 1970 के दशक में मान ली गयी थी और 1989 में आखिरकार सिद्ध कर दी गयी. यह हेपेटाइटिस के पांच वायरसों: ए (A), बी (B), सी (C), डी (D), ई (E) में से एक है.

संकेत और लक्षण[संपादित करें]

तीव्र[संपादित करें]

तीव्र हेपेटाइटिस सी एचसीवी (HCV) के साथ होने वाले पहले 6 महीनों के संक्रमण को संदर्भित करता है. 60% से 70% संक्रमित लोगों में तीव्र चरण के दौरान कोई लक्षण दिखाई नहीं देता है. रोगियों की एक अल्प संख्या तीव्र चरण के लक्षणों को महसूस करती है, वे आमतौर पर हल्के और साधारण होते हैं तथा हेपेटाइटिस सी का निदान करने में कभी कभार ही मदद करते हैं. तीव्र हेपेटाइटिस सी के संक्रमण में कम भूख लगना, थकान, पेट दर्द, पीलिया, खुजली और फ्लू जैसे लक्षण शामिल हैं. हेप सी जेनोटाइप्स 2ए (2A) और 3ए (3A) में रोगमुक्त होने की उच्चतम दर क्रमशः 81% और 74% मौजूद है.
पीसीआर (PCR) द्वारा संक्रमण होने के तकरीबन एक से तीन सप्ताह के बीच आमतौर पर खून में हेपेटाइटिस सी वायरस के होने का पता लगता है और आमतौर पर 3 से 15 सप्ताह के बीच वायरस से प्रतिरक्षकों (एंटीबॉडिज) का पता लगता है. स्वाभाविक वायरल निकासी दरों में अधिकतम भिन्नता है और एचसीवी (HCV) से पीड़ित 10-60%[2] लोग तीव्र चरण के दौरान वायरस को अपने शरीर से अलग करने में कामयाब हो जाते हैं जैसा कि यकृत एंजाइम्स ((ऐलानाइन ट्रांसामिनेस (एएलटी) (ALT) और ऐस्परटेट ट्रांसामिनेस (एएसटी) (AST)) तथा प्लाज़्मा एचसीवी-आरएनए (HCV-RNA) क्लीयरेंस के सामान्यीकरण द्वारा दर्शाया गया है (इसे स्पॉनटेनियस वायरल क्लीयरेंस के नाम से जाना जाता है). हालांकि, स्थायी संक्रमण आम[3] हैं और अधिकतर मरीजों में दीर्घकालिक हेपेटाइटिस सी यानी 6 महीने से अधिक समय तक रहने वाला संक्रमण विकसित होता है.[4][5][6]
पहले यह देखने के लिए कि यह अपने-आप खत्म होता है या नहीं, तीव्र संक्रमण से पीड़ित व्यक्ति का इलाज नहीं किया जाता था; हाल के अध्ययनों से पता चला है कि जीनोटाइप 1 संक्रमण के तीव्र चरण के दौरान इलाज करने से सफलता की संभावना 90% से अधिक होती है, जो दीर्घकालिक संक्रमण के इलाज के लिए आवश्यक समय से आधा ही है.[7]

दीर्घकालिक[संपादित करें]

हेपेटाइटिस सी वायरस का संक्रमण छह महीनों से ज्यादा रहने पर उसे दीर्घकालिक हेपेटाइटिस के रूप में परिभाषित किया गया है. नैदानिक तौर पर, यह अक्सर स्पर्शोन्मुख (लक्षण के बिना) होता है और अक्सर इसका पता संयोगवश चलता है (जैसे सामान्य जांच).
दीर्घकालिक हेपेटाइटिस सी का स्वाभाविक प्रवाह प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न-भिन्न होता है. हालांकि एचसीवी (HCV) से संक्रमित सभी व्यक्तियों की जिगर बायोप्सी में सूजन के सबूत मिले हैं. लीवर स्केरिंग (फाइब्रोसिस) के विकास की दर अलग-अलग व्यक्तियों में भिन्नता जाहिर करती है. समय के साथ जोखिम का सही आकलन करना मुश्किल होता है क्योंकि इस वायरस के परीक्षण के लिए बहुत कम समय मिल पाता है.
हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि अनुपचारित मरीजों में से एक तिहाई को मोटे तौर पर कम से कम 20 वर्षों में यकृत सिरोसिस हो जाता है. अन्य एक तिहाई लोगों में सिरोसिस 30 वर्षों के भीतर विकसित होता है. बाकी के मरीजों में इतनी धीमी गति से विकास होता है कि उनकी जिंदगी में सिरोसिस होने का कोई खतरा नहीं रहता है. इसके विपरीत एनआईएच (NIH) सर्वसम्मत दिशा निर्देश कहता है कि 20 वर्ष की अवधि में सिरोसिस होने का जोखिम 3-20 प्रतिशत है.[8]
एचसीवी (HCV) रोग की दर को प्रभावित करने वाले कारकों में उम्र (बढ़ती उम्र तेजी से प्रगति के साथ जुड़ी है), लिंग (बीमारी महिलाओं की तुलना में पुरुषों में तेजी से विकसित हो सकती है), शराब की खपत (रोग की दर को बढ़ाने से संबद्ध), एचआईवी (HIV) (रोग को उल्लेखनीय स्तर तक बढ़ाने के लिए जिम्मेदार) सह-संक्रमण और फैटी यकृत (यकृत की कोशिकाओं में वसा की उपस्थिति बढ़ने से रोग बढ़ने की दर तेजी से बढ़ती है) शामिल है.
यकृत की बीमारी के लक्षण आम तौर पर विशेष रूप से तब तक अनुपस्थित रहते हैं जब तक यकृत में वास्तविक रूप में नुकसान न हो जाता हो. हालांकि, हेपेटाइटिस सी एक दैहिक रोग है और रोगियों को नैदानिक प्रदर्शन में लक्षणों की अनुपस्थिति से लेकर गंभीर बीमारी का रूप लेने से पहले तक व्यापक अंतर दिखाई दे सकता है. दीर्घकालिक हेपेटाइटिस सी के साथ जुड़े व्यापक लक्षणों में थकान, फ्लू जैसे लक्षण, गांठ का दर्द, खुजली, स्वप्नदोष, भूख में कमी, मिचली और अवसाद शामिल हैं.
यकृत के काम करने में कमी आने या यकृत संचरण पर अधिक दबाव पड़ने की स्थिति में दीर्घकालिक हेपेटाइटिस सी सिरोसिस की स्थिति तक पहुंच जाता है. इस अवस्था को पोर्टल हाइपरटेंशन कहते हैं. यकृत सिरोसिस के संभावित संकेतों और लक्षणों में एसाइट्स जलोदर (पेट में तरल पदार्थ का संचय), चोट और खून बहने की प्रवृत्ति और वराइसेस (पेट और घुटकी में विशेष रूप से बढ़ी हुई नस), पीलिया और संज्ञानात्मक हानि का लक्षण जिसे हेपाटिक एनसेफालोपेथी कहा जाता है, शामिल है. अमोनिया और अन्य पदार्थों के संचय की वजह से हेपाटिक एनसेफालोपैथी होती है, जिसे सामान्य तौर पर एक स्वस्थ यकृत द्वारा साफ कर लिया जाता है.
यकृत एंजाइम परीक्षणों में एएलटी (ALT) औऱ एएसटी (AST) की भिन्न ऊंचाई दिखाई देती है. समय-समय पर वे सामान्य परिणाम भी दिखा सकते हैं. आमतौर पर प्रोथ्रोम्बीन और एल्बुमीन के परिणाम सामान्य होते हैं लेकिन एक बार सिरोसिस होने पर असामान्य हो सकते हैं. यकृत परीक्षणों की ऊंचाई का स्तर बायोप्सी पर यकृत के नुकसान के साथ मेल नहीं खाते हैं. वायरल जीनोटाइप और विषाणु जनित भार भी यकृत की चोट के साथ मेल नहीं खाते. नुकसान (स्केरिंग) और सूजन का सही निर्धारण करने के लिए जिगर की बायोप्सी सबसे अच्छा परीक्षण है. अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन जैसे रेडियोग्राफिक अध्ययन अगर काफी उन्नत न हो तो यकृत के नुकसान को नहीं दर्शाते. हालांकि, लीवर फाइब्रोसिस और नेक्रोटिको-सूजन का आकलन करने के लिए क्रमशः फाइब्रो टेस्ट[9] और एक्टीटेस्ट जैसे गैर आक्रामक परीक्षण (खून का नमूना) आ रहे हैं. इन परीक्षणों की पुष्टि[10] हो चुकी है और यूरोप में इनकी सिफारिश की जा चुकी है (संयुक्त राज्य अमेरिका में एफडीए (FDA) प्रक्रियाएं शुरू हो चुकी हैं)
हेपेटाइटिस सी के अन्य रूपों की तुलना में दीर्घकालिक हेपेटाइटिस को एकस्ट्राहेपेटिक प्रदर्शन के साथ जोड़ा जा सकता है, जो एचसीवी (HCV) की उपस्थिति से जैसे कि पोरफाइरिया कुटेनिया टार्डा, क्रायोग्लोबुलिनेमिया (स्मॉल वेसल वेसकुलिटिस का एक स्वरुप)[11], ग्लोमेरुलोनफ्राइटिस (गुर्दे की सूजन और जलन) और खासकर, मेम्ब्रानोप्रोलिफरेटिव ग्लोमेरुलोनफ्राइटिस-एमपीजीएन (MPGN) से जुड़ा होता है.[24] हेपेटाइटिस सी को शायद ही कभी सिक्का सिंड्रोम (sicca syndrome) थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया, लिचेन प्लेनस, डायबीटीज़ मेलिटस और बी- सेल लिम्फोप्रोलाइफरेटिव विकार से जोड़ा जाता है.[12]

विषाणु विज्ञान (वायरोलॉजी)[संपादित करें]

हेपेटाइटिस सी वायरस छोटा (आकार में 50 एनएम), घिरा हुआ, एकल-असहाय, सकारात्मक भाव वाला आरएनए (RNA) वायरस है. यह फ्लाविविरिडी (Flaviviridae) परिवार में हेपसीवायरस जीनस का एकमात्र ज्ञात सदस्य है. हेपेटाइटिस सी वायरस के छह प्रमुख जीनोटाइप हैं जिन्हें संख्यानुसार दर्शाया जाता है (जैसे जीनोटाइप 1, जीनोटाइप 2 आदि).
हेपेटाइटिस सी वायरस रक्त से रक्त का संपर्क होने पर फैलता है. यह अनुमान लगाया गया है कि विकसित देशों में 90% व्यक्तियों में दीर्घकालिक एचसीवी (HCV) संक्रमण अपरीक्षित रक्त या रक्त उत्पादों या नशीली दवाओं की सुई के प्रयोग या यौन संपर्क के माध्यम से संक्रमित होता है. विकासशील देशों में एचसीवी (HCV) संक्रमण के प्राथमिक स्रोत हैं, संक्रमित इंजेक्शन उपकरण और अपर्याप्त परीक्षित रक्त तथा रक्त उत्पादों के सम्मिश्रण. एक दशक से ज्यादा समय से संयुक्त राज्य अमेरिका में रक्त आधान से एक भी प्रलेखित मामला नहीं हुआ है क्योंकि रक्त की आपूर्ति को ईआईए (EIA) और पीसीआर (PCR) दोनों तकनीकों से परखा जाता है.
हालांकि इंजेक्शन से नशीली दवाओं का प्रयोग करना एचसीवी (HCV) संक्रमण का सबसे आम रास्ता है, कोई भी ऐसा कार्य या गतिविधि या स्थिति जिसमें खून से खून का संपर्क होने की संभावना है एचसीवी (HCV) संक्रमण का संभावित स्रोत हो सकता है. यौन संपर्क करने पर यह वायरस संचरित हो सकता है लेकिन ऐसा कम ही होता है और आमतौर पर ऐसा तभी होता है जब एक एसटीडी (STD) के कारण घाव खुल जाते हैं और रक्तस्राव का होता है तथा अधिक रक्त संपर्क होने की संभावना बढ़ाता है.[13].

संचरण[संपादित करें]

अमेरिका में हेपेटाइटिस सी के स्रोत से संक्रमण. एन डी (सीडीसी, [28])
शुरू में यौन गतिविधियों और व्यवहारों को हेपेटाइटिस सी वायरस के संभावित स्रोतों के रूप में पहचाना गया था. हाल के अध्ययन संचरण के इस मार्ग पर सवाल उठाते हैं.[14] वर्तमान में हेपेटाइटिस सी के संक्रमण के लिए इस संचरण को दुर्लभ माना जा रहा है. वर्तमान में संचरण के ज्ञात तरीके निम्नलिखित हैं. संचरण के अन्य रूप हो सकते हैं, जो अभी तक अज्ञात हों.

इंजेक्शन से दवा का उपयोग[संपादित करें]

वर्तमान में जिन लोगों ने ड्रग्स के लिए इंजेक्शन का प्रयोग किया है या अतीत में कर चुके हैं, उन लोगों में हेपेटाइटिस सी होने का जोखिम बढ़ा रहता है. ऐसा माना जाता है कि शायद इन लोगों ने साझा सुई या अन्य दवा सामग्री का प्रयोग किया होगा (जिसमें कुकर, कपास, चम्मच, पानी शामिल हैं), जो एचसीवी (HCV)- संक्रमित रक्त द्वारा संदूषित किया जा सकता है. एक अनुमान के अनुसार संयुक्त राज्य अमेरिका में 60% से 80% अंतःशिरा मनोरंजक दवा उपयोगकर्ताओं के एचसीवी (HCV) से संक्रमित होने की आशंका है.[15] अनेक देशों में हेपेटाइटिस सी को फैलने से रोकने के लिए नुकसान कम करने की रणनीतियों को शिक्षा, साफ और सुरक्षित सुई और सीरिंज के प्रावधान तथा सुरक्षित इंजेक्शन तकनीक को प्रोत्साहित किया. वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका में इस मार्ग से प्रसारण में गिरावट देखी गयी है जिसका कारण अभी स्पष्ट नहीं हैं.
13 अप्रैल 2000 को बेनिफिट्स कमिटी ऑन वेटरन्स अफेयर्स की उपसमिति (Subcommittee on Benefits Committee on Veterans’ Affairs), अमेरिकी हाउस के प्रतिनिधियों के समक्ष वेटरन्स स्वास्थ्य प्रशासन, स्टेट वेटरन्स अफेयर्स विभाग के लिए गैरी ए रोज़ेल, एम. डी. (M.D.), संक्रामक बीमारियों के लिए कार्यक्रम निदेशक ने वीए (VA) साक्ष्य पेश करते हुए कहा, "दस अमेरिकी बुजुर्गों में से एक एचसीवी (HCV) से संक्रमित है, जो कि आम आबादी के संक्रामक दर 1.8% से 5 गुना अधिक है."
1999 में वेटरन्स हेल्थ एडमिनिस्ट्रेशन वीएचए (VHA) द्वारा आयोजित अध्ययन में 26,000 बुज़ुर्गों को शामिल किया गया, जिसमें वीएचए (VHA) सिस्टम में शामिल 10% बुज़ुर्गों का परीक्षण करने पर पता चल कि वे सभी हेपेटाइटिस सी से संक्रमित हैं.
कुल संख्या में से जो लोग हेपेटाइटिस सी एंटीबॉडी सकारात्मक पाए गए और जिनके प्रतिरक्षा सेवा में काफी समय बिताया था, उनमें से 62.7% के वियतनाम से होने का उल्लेख किया गया था. दूसरे सबसे बड़े समूह के रूप में बाद में वियतनाम में रहने वाले 18.2%, उसके बाद कोरियाई संघर्ष के 4.8%, कोरियाई संघर्ष के बाद के 4.3%, डबल्यूडबल्यूआईआई (WWII) से 4.2% और फारस की खाड़ी के 2.7% योद्धा शामिल थे.

रक्त उत्पाद[संपादित करें]

रक्त आधान, रक्त उत्पादों या अंग प्रत्यारोपण से पहले एचसीवी (HCV) की जांच (स्क्रीनिंग) का कार्यान्वयन (अमेरिका में यह 1992 से पूर्व की प्रक्रियाओं को उल्लेख करता है) हेपेटाइटिस सी के जोखिम कारकों में कमी लाता है.
पहली बार 1989 में हेपेटाइटिस सी वायरस जीनोम से सीडीएनए (cDNA) क्लोन पृथक किया गया था[16] लेकिन 1992 तक वायरस स्क्रीन के लिए विश्वसनीय परीक्षण उपलब्ध नहीं थे. इसलिए जो लोग एचसीवी (HCV) के लिए रक्त आपूर्ति की जांच के क्रियान्वयन से पहले रक्त या रक्त उत्पादों के संपर्क में आए हैं, उनके एचसीवी (HCV) वायरस से संक्रमित हो गये होंगे. रक्त उत्पादों में थक्के के कारक (हेमोफिलिएक्स से लिये गये), इम्यूनोग्लोबुलिन, रोगम, प्लेटलेट्स और प्लाज़्मा शामिल हैं. 2001 में रोग के नियंत्रण और रोकथाम केंद्र ने सूचना दी कि संयुक्त राज्य अमेरिका में कुल चढ़ाये गये एक लाख प्रति यूनिट में एचसीवी (HCV) संक्रमण होने का जोखिम केवल रक्त की एक इकाई जितना है.

इयाट्रोजेनिक चिकित्सा या दंत अरक्षितता[संपादित करें]

अपर्याप्त या अनुचित चिकित्सा या दंत उपकरणों के माध्यम से लोग एचसीवी (HCV) के संपर्क में आ सकते हैं. अनुचित ढंग से विसंक्रमित किये गये उपकरण दूषित रक्त का वहन कर सकते हैं जिनमें सुई या सिरिंजें, हेमोडायलिसिस उपकरण, मौखिक स्वच्छता उपकरण उपकरण और जेट एयर गन शामिल हैं. समयनिष्ठ और विसंक्रमण की उचित तकनीकों का अतिसतर्कतापूर्वक प्रयोग करके और प्रयोग में लाए गए उपकरणों को नष्ट कर एचसीवी (HCV) आयट्रोजेनिक का जोखिम कम करके शून्य तक पहुंचाया जा सकता है.

रक्त[संपादित करें]

अरक्षितता[संपादित करें]
व्यवसाय[संपादित करें]
चिकित्सा और दंत चिकित्सा कर्मी, (जैसे कि दमकल कर्मी, पैरामेडिक्स, आपातकालीन चिकित्सा तकनीशियन, कानून प्रवर्तन अधिकारी) पहले रेस्पोंडर्स हैं और सैन्य कर्मियों में आकस्मिक रूप से खून के संपर्क में आने से आकस्मिक सुइयों के माध्यम से आंखों या घावों पर खून के छींटों से एचसीवी (HCV) के संक्रमण आ सकते हैं. ऐसे आकस्मिक जोखिमों से बचने के लिए सार्वभौम सावधानियों के इस्तेमाल से एचसीवी (HCV) का जोखिम महत्वपूर्ण ढंग से कम हो जाता है.
मनोरंजन[संपादित करें]
संपर्क खेल और अन्य गतिविधियां जैसे कि "स्लैम नृत्य" आकस्मिक रूप से रक्त-से-रक्त का संपर्क कायम कर एचसीवी (HCV) को बढ़ावा देने वाला प्रमुख कारक है.[17]

यौन संपर्क[संपादित करें]

एचसीवी (HCV) का यौन संचरण शायद ही होता है. अध्ययन से पता चलता है कि विषमलैंगिकों में यौन संचरण का जोखिम एकल रिश्ते से एकदम कम या दुर्लभ हैं.[18][19] सीडीसी (CDC) लंबे समय से एकल पद वाले जोड़ों में कंडोम के इस्तेमाल की अनुशंसा नहीं करता है (जहां एक साथी सकारात्मक है और दूसरा नकारात्मक).[20] हालांकि हेपेटाइटिस सी की उच्च व्यापकता की वजह से यह छोटा सा जोखिम यौन मार्गों द्वारा संचरित मामलों को एक गैर तुच्छ संख्या में बदल सकता है. योनि छेदक सेक्स में संचरण का जोखिम कम होने की मान्यता है जबकि एनोजेनिटल मुकोसा के यौन संपर्क, जिसमें उच्च स्तर की मानसिक क्षति (गुदा की गहराई तक जाने वाले यौन संपर्क, मुट्ठी, यौन खिलौने का इस्तेमाल) संचरण का जोखिम उच्च स्तर का होता है.[21]

देह छेदन और गोदना (टैटूज़)[संपादित करें]

अगर उचित विसंक्रमण तकनीकों का पालन नहीं किया गया तो गोदना रंजक, दवात, स्टाइलेट्स और छेदने वाले औजारों से गुदवाने पर भी एचसीवी (HCV) संक्रमित खून एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक संचरित हो सकता है. 1980 के दशक के मध्य से पहले "भूमिगत" या गैर पेशेवर से गुदवाना या छेद कराना चिंता का विषय है क्योंकि ऐसी सेटिंग में रोगाणुहीन तकनीक अपर्याप्त हो सकते हैं जिससे बीमारी को फैलने से रोका जा सके; साझा तौर पर गोदने के संक्रमित उपकरणों (उदाहरण के लिए जेल व्यवस्था में)[22] के इस्तेमाल से एचसीवी का शिकार होने का जोखिम बढ़ता है. वास्तव में, यही कारण था जिसकी वजह से पामेला एंडरसन को आधिकारिक तौर पर कहना पड़ा था : "मैं अपने पूर्व पति टॉमी ली के साथ साझा तौर पर गोदने के लिए एक ही सुई का इस्तेमाल करके हेपटाइटिस सी का शिकार हुई." टॉमी को यह बीमारी थी और उन्होंने हमारी शादी के दौरान मुझे इस बारे में कभी नहीं बताया."[23] यू.एस. सेंटर्स फॉर डिजीज़ कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (U.S. Centers for Disease Control and Prevention) ने इस विषय पर कहा कि, "अनौपचारिक केंद्रों या संक्रमित उपकरणों से टैटूज़ बनाए जाने या शरीर छिदवाने पर हेपटाइटिस सी और अन्य संक्रामक रोगों का संचरण संभव है." इन जोखिमों के बावजूद, अनुमोदित सुविधाओं में टैटू बनवाने पर एचसीवी (HCV) संक्रमण का होना मुश्किल है.[24]

व्यक्तिगत सामानों का साझा इस्तेमाल[संपादित करें]

व्यक्तिगत देखभाल के सामानों जैसे कि रेज़र, टूथब्रश, छल्ली कैंची जैसे व्यक्तिगत देखभाल उपकरण और अन्य मैनीक्यूरिंग या पेडिक्यूरिंग उपकरणों से आसानी से खून दूषित हो सकता है. ऐसी चीज़ों का साझा इस्तेमाल करने पर एचसीवी (HCV) होने का जोखिम रहता है. ऐसी किसी भी हालत में जब नासूर जैसे घावों, सर्दियों के घावों, दांत साफ कराने के तुरंत बाद जिस स्थिति में खून बहता रहता है, चिकित्सा के वक्त उचित सावधानी बरतनी चाहिए.
सामान्य संपर्क करने जैसे कि जकड़ने, चुंबन लेने या एक साथ खाने या खाना पकाने के बर्तनों से एचसीवी (HCV) नहीं फैलता है.[25]

ऊर्ध्व संचरण[संपादित करें]

जन्म की प्रक्रिया के दौरान संक्रमित मां से बच्चे में प्रसारित होने वाले रोग के संचरण को ही ऊर्ध्व संचरण कहते हैं. मां से बच्चे में हेपेटाइटिस सी का संचरण अच्छी तरह से वर्णित किया गया है, लेकिन ऐसा अपेक्षाकृत कम होता है. प्रसव के समय जो महिलाएं एचसीवी आरएनए (HCV RNA) पॉजिटिव होती हैं उनमें ही संचरण होता है. ऐसी अवस्था में अनुमानतः 100 में से 6 को संचरण होने का खतरा होता है. प्रसव के समय जो महिलाएं एचसीवी (HCV) और एचआईवी (HIV) दोनों से पॉजिटिव होती हैं, उनमें 100 में से 25 में एचसीवी (HCV) के संचरण का जोखिम रहता है.
एचसीवी (HCV) के सीधे संचरण का खतरा प्रसव के तरीके या स्तनपान से जुड़ा हुआ नहीं दिखता है.

निदान[संपादित करें]

हेपेटाइटिस सी के संक्रमण के सरोलॉजिक प्रोफ़ाइल
"हेपेटाइटिस सी" का निदान उसके तीव्र चरण के दौरान मुश्किल से हो पाता है क्योंकि अधिकतर संक्रमित लोगों को रोग के इस चरण में कोई लक्षण अनुभव नहीं होता है. जो लोग तीव्र चरण के दौरान लक्षणों का अनुभव करते हैं वे इतने बीमार होते हैं कि चिकित्सा भी नहीं करा पाते. दीर्घकालिक हेपेटाइटिस सी के चरण का निदान भी बहुत चुनौतीपूर्ण है क्योंकि जब तक यकृत की बीमारी बढ़ नहीं जाती, इसके लक्षण उजागर नहीं होते हैं और ऐसा होने में कई दशक लग जाते हैं.
चिकित्सा के इतिहास (खासकर जब IV मादक द्रव्यों के दुरुपयोग या कोकीन जैसी सांस से लेने वाली दवा का प्रयोग किया गया हो), गोदना या छेद करवाने का इतिहास हो, अपरिभाषित लक्षण, असामान्य यकृत एंजाइम्स या नियमित रक्त परीक्षण के दौरान पाये गये परीक्षणों के आधार पर दीर्घकालिक हेपेटाइटिस सी होने का शक किया जा सकता है. आमतौर पर रक्तदान के मौकों और कॉनटेक्ट ट्रेसिंग पर (रक्त दाताओं की रक्त जनित अन्य बीमारियों के साथ-साथ हेपेटाइटिस के लिए भी खून की जांच की जाती है) हेपेटाइटिस सी की पहचान हो पाती है.
हेपेटाइटिस सी का परीक्षण रक्तजनित बीमारियों के रक्तपरीक्षण से शुरू होता है जो एचसीवी (HCV) का पता लगाने में काम आता है. संक्रमित होने के 15 हफ्तों के भीतर 80% रोगियों में, 5 महीने बाद > 90% में और 6 महीने बाद > 97% रोगियों में एचसीवी-विरोधी (Anti-HCV) प्रतिरक्षकों को पाया जा सकता है. कुल मिलाकर, एचसीवी (HCV) प्रतिरक्षक परीक्षण में हेपेटाइटिस सी वायरस से अरक्षितता के लिए मजबूत सकारात्मक भावी सूचक मूल्य है, लेकिन जिन रोगियों में अभी प्रतिरक्षक (सरोकॉन्वर्सन) विकसित नहीं हो पाये हैं या जिनमें अपर्याप्त स्तर के प्रतिरक्षक हों, वे छूट सकते हैं. कभी-कभार एचसीवी (HCV) से संक्रमित लोगों में वायरस से लड़ने के लिए प्रतिरक्षक विकसित नहीं हो पाते हैं. इसीलिए वे एचसीवी प्रतिरक्षक स्क्रीनिंग में सकारात्मक परीक्षण नहीं लाते हैं. इस संभावना की वजह से आरएनए (RNA) परीक्षण (नीचे न्यूक्लीक एसिड परीक्षण की प्रक्रिया देखें) पर विचार किया जाना चाहिए, जब प्रतिरक्षक परीक्षण नकारात्मक हो लेकिन हेपटाइटिस का जोखिम अधिक हो (जैसे कि किसी में सीधा संचरण होने पर हेपटाइटिस सी के जोखिम के कारकों में वृद्धि हो गयी हो). हालांकि, केवल यकृत के काम करने के परीक्षण के साधारण परिणाम से संक्रमण की गंभीरता या भविष्यवाणी कर लेना अक्लमंदी नहीं हैं क्योंकि यह यकृत की बीमारियों की संभावनाओं को खारिज नहीं करता है.[26]
एचसीवी-विरोधी (Anti-HCV) वायरस के जोखिम की ओर संकेत करता है लेकिन यह पता नहीं लग सकता कि संक्रमण मौजूद है या नहीं. सभी लोगों को जिनमें सकारात्मक एंटी-एचसीवी (anti-HCV) (प्रतिरक्षक) पाये गये हैं, उन्हें हेपेटाइटिस सी वायरस की उपस्थिति के लिए अतिरिक्त परीक्षण से गुजरना चाहिए ताकि यह पता लगाया जा सके कि वर्तमान में संक्रमण है या नहीं. वायरस की उपस्थिति का पता लगाने और आणविक न्यूक्लिक एसिड परीक्षण तरीकों के इस्तेमाल के लिए पोलीमरेज़ चेन प्रतिक्रिया पीसीआर (PCR), प्रतिलेखन मध्यस्थता प्रवर्धन टीएमए (TMA) या शाखायुक्त डीएनए (b-DNA) का परीक्षण किया गया. सभी एचसीवी (HCV) न्यूक्लिक एसिड आणविक परीक्षणों में न सिर्फ यह पता लगाने की क्षमता है कि वायरस मौजूद है या नहीं बल्कि उनमें रक्त (एचसीवी (HCV) वायरल लोड) में मौजूद वायरस की मात्रा मापने की भी क्षमता है). एचसीवी (HCV) वायरल लोड इंटरफेरॉन आधारित चिकित्सा की प्रतिक्रियाओं की संभावना को निर्धारित करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है लेकिन यह न तो बीमारी की गंभीरता का और न हीबीमारी के विकास का कोई संकेत देता है.
आमतौर पर एचसीवी (HCV) संक्रमण से पीड़ित लोगों में जीनोटाइप परीक्षण की सिफारिश की गयी है. एचसीवी (HCV) जीनोटाइप परीक्षण का इस्तेमाल इंटरफेरॉन आधारित उपचार के आवश्यक अरसे और संभावित प्रतिक्रिया का निर्धारण करने के लिए किया जाता है.

रोकथाम[संपादित करें]

रोग नियंत्रण केंद्र के मुताबिक हेपटाइटिस सी वायरस त्वचा या इंजेक्शन से अधिक मात्रा में खून के संपर्क में आने से फैलता है.[27]
  • इंजेक्शन से नशीली दवाओं का प्रयोग (वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका में एचसीवी (HCV) संचरण का सबसे आम जरिया है)
  • दान किये गये रक्त, रक्त उत्पादों और अंगों की प्राप्ति (पहले संयुक्त राज्य अमेरिका में संचरण एक आम जरिया था लेकिन 1992 में रक्त जांच उपलब्ध होने से दुर्लभ है).
  • स्वास्थ्य सेवा के दौरान सुई (नीडलस्टिक) के घाव
  • एचसीवी (HCV) संक्रमित मां से जन्म
एचसीवी (HCV) कभी-कभी इन माध्यमों से भी फैल सकता है
  • एचसीवी (HCV) संक्रमित व्यक्ति से यौन संपर्क (संचरण का एक अकुशल माध्यम)
  • संक्रमित खून से संदूषित निजी सामान जैसे कि रेज़र या टूथब्रश का साझा इस्तेमाल करने से (संचरण के अक्षम सदिश (वैक्टर))
  • अन्य स्वास्थ्य प्रक्रियाएं जिनमें आक्रामक तरीके शामिल हैं, जैसे कि इंजेक्शन (आमतौर पर महामारी के संदर्भ में मान्यता प्राप्त)
नई सुइयों और सिरिंजों के प्रावधान जैसी रणनीतियों और इंजेक्शन से दवा लेने की सुरक्षित प्रक्रियाओं की शिक्षा बड़े पैमाने पर इंजेक्शन से नशा करने वालों के बीच हेपटाइटिस सी को फैलने से रोकता है.
कोई भी टीका हेपटाइटिस सी के संपर्क में आने से न तो बचाता है और न ही इसके इलाज में मदद करता है. टीकों पर काम चल रहा है और कुछ ने उत्साहजनक परिणाम दिखाया है.[28]

उपचार[संपादित करें]

हेपेटाइटिस सी वायरस 50% से 80% संक्रमित व्यक्तियों में पुराने संक्रमण उभारता है. इनमें से लगभग 50% उपचार के दौरान कोई प्रतिक्रिया नहीं देते हैं. दीर्घकालिक एचसीवी (HCV) वाहकों में इस वायरस को खत्म करने का बहुत कम मौका होता है.(0.5% से 0.74% प्रति वर्ष)[29][30] हालांकि, दीर्घकालिक हेपटाइटिस सी के अधिकतर मरीजों में यह इलाज के बगैर खत्म नहीं होगा.

औषधि (इंटरफेरॉन और रिबावायरिन)[संपादित करें]

वर्तमान उपचार में हेपटाइटिस सी वायरस के जीनोटाइप के आधार पर पेगीलेटेड इंटरफेरॉन-अल्फा 2ए या पेगीलेटेड इंटरफेरॉन-अल्फा-2बी (ब्रांड का नाम पेगासीज़ या पीईजी-इंट्रोन) और एंटी वायरल दवा रिबावायरिन 24 से 48 सप्ताह तक दी जाती है. एक बड़े मल्टीसेंटर में व्यापक स्तर पर जीनोटाइप 2 या 3 संक्रमित मरीजों (नॉर्डीमेनिक)[31] में से जिन मरीजों का 12 सप्ताह से निगरानी में रखकर इलाज किया जा रहा था, सातवें दिन उनमें 1000 आईयू (IU)/मि.ली.(mL) से कम एचसीवी आरएनए प्राप्त किया था जो कि 24 सप्ताह से अधिक समय से इलाज किये जा रहे मरीजों की तुलना में अधिक था.[32][33]
एक व्यवस्थित समीक्षा और नियंत्रित परीक्षण के अनुसार रिबावायरिन पेगीलेटेड इंटरफेरॉन अल्फा 2बी की तुलना में पेगीलेटेड इंटरफेरॉन अल्फा-2ए औऱ रिबावायरिन देने से दीर्घकालिक हेपटाइटिस सी के मरीजों में वायरोलोजिकल प्रतिक्रिया अनवरत बढ़ सकती है.[34] सापेक्ष लाभ में 14.6% वृद्धि थी. एक ही तरह के जोखिम के मरीजों पर किये गये इस अध्ययन में (41.0% ने पेगीलेटेड इंटरफेरॉन अल्फा 2ए प्लस रिबावायरिन न दिये जाने पर निरंतर वायरस संबंधित प्रतिक्रिया दी है) पूर्ण लाभ को 6% बढ़ता पाया गया है. 16.7 रोगियों को एक इलाज का फायदा मिलना चाहिए (उपचार के लिए आवश्यक संख्या = 16.7. मरीजों के निरंतर वायरोलॉजिकल प्रतिक्रिया के जोखिम की कमी और अधिकता को जानने के लिए इन परिणामों को व्यवस्थित करने के लिए यहां क्लिक करें) हालांकि, इस अध्ययन के परिणाम अनिश्चित और सामयिक संपर्क और चयनात्मक खुराक की प्रतिक्रिया की वजह से पक्षपाती हो सकते हैं.
आमतौर पर हेपटाइटिस सी वायरस से संक्रमित और लगातार असामान्य ढंग से कार्य कर रहे यकृत के परीक्षण वाले मरीजों के लिए इलाज की सिफारिश की जाती है.
तीव्र संक्रमण वाले चरण में छोटी अवधि के उपचार से भी उच्च दर की सफलता (90% से अधिक) प्राप्त हुई है, लेकिन इस इलाज के बिना भी 15-40% मामलों में सहज निकासी से इसे संतुलित किया जाना चाहिए (ऊपर तीव्र हेपेटाइटिस सी का अनुभाग देखें).
प्रारंभ में कम विषाणुजनित भार वाले मरीज अधिक विषाणुजनित भार वाले मरीजों की तुलना में इलाज में बेहतर प्रतिक्रिया देते हैं. (400,000 आईयू (IU)/मि.ली.(mL) से अधिक). वर्तमान संयोजन चिकित्सा आमतौर पर जठरांत्र विज्ञान, हेप्टोलोजी या संक्रामक रोग जैसे क्षेत्रों के चिकित्सकों की देखरेख में की जाती है.
अतीत में दवा या अल्कोहल का अत्यधिक दुरुपयोग कर चुके लोगों के लिए यह इलाज कराना शारीरिक तौर पर बहुत मुश्किल होता है. कुछ मामलों में इससे अस्थायी विकलांगता भी हो सकती है. रोगियों का एक अच्छे अनुपात को 'फ्लू-जैसे' सिंड्रोम (सबसे अधिक आम, इंटरफेरॉन के साप्ताहिक इंजेक्शन दिए जाने के बाद कुछ दिन तक) से लेकर एनीमिया, हृदय की समस्यायें एवं आत्महत्या या आत्महत्या के विचार आदि मनोविकारी समस्याओं जैसे पार्श्विक प्रभावों का अनुभव होगा. बाद की समस्याएं मरीज द्वारा अनुभव किये जाने वाले सामान्य शारीरिक तनाव की वजह से बढ़ जाती हैं.

जीनोटाइप द्वारा चिकित्सा दर[संपादित करें]

जीनोटाइप द्वारा भिन्न प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं. (संयुक्त राज्य अमेरिका में हेपेटाइटिस सी के लगभग 80% रोगियों में जीनोटाइप 1 है. मध्य पूर्व और अफ्रीका में जीनोटाइप 4 आम है.)
जीनोटाइपविवरण
2 और 3एचसीवी (HCV) जीनोटाइप 2 और 3 युक्त लोगों में 24 सप्ताह के उपचार के साथ 75% या बेहतर निरंतर रोगमुक्ति दर (निरंतर विषाणुजनित प्रतिक्रिया) देखी गयी है.[35] 7वें दिन तक (यानी पेगीलेटेड इंटरफेरॉन की दूसरी खुराक के ठीक पहले)1000 IU/mL से कम एचसीवी आरएनए (HCV RNA) प्राप्त रोगियों का निरंतर रोगमुक्ति दर सहित 12 हफ्तों से भी कम इलाज किया जा सकता है[36].
148 हफ्तों के उपचार से एचसीवी (HCV) जीनोटाइप 1 युक्त रोगियों में लगभग 50% निरंतर प्रतिक्रिया प्राप्त होती है. एचसीवी (HCV) जीनोटाइप 1 युक्त रोगियों में, यदि पेगीलेटेड इंटरफेरॉन + रिबावायरिन से उपचार द्वारा 12 सप्ताह के बाद 2-लॉग विषाणुजनित भार (वायरल लोड) में कमी या आरएनए (RNA) ("शीघ्र विषाणुजनित प्रतिक्रिया" कहा जाता है) की पूरी निकासी नहीं हो पाती है तो इस उपचार की सफलता की सम्भावना 1% से कम रहती है.
4जीनोटाइप 4 युक्त व्यक्तियों में 48 हफ्तों के इलाज से लगभग 65% निरंतर प्रतिक्रिया पाई जाती है.
6वर्तमान समय में जीनोटाइप 6 की बीमारी में इलाज के सबूत विरल हैं और जो सबूत मौजूद है वह जीनोटाइप 1 रोग के लिए उपयोग की जाने वाली खुराक द्वारा 48 सप्ताह का उपचार है.[37] छोटी अवधि (जैसे, 24 सप्ताह) के उपचार पर विचार करने वाले चिकित्सकों को एक नैदानिक परीक्षण के संदर्भ में ही ऐसा करना चाहिए.
गैर जीनोटाइप 1 रोगियों में प्रारंभिक विषाणुजनित प्रतिक्रिया आम तौर पर परीक्षित नहीं है क्योंकि इसे प्राप्त करने की संभावना 90% से अधिक हैं. इलाज की व्यवस्था पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, क्योंकि निरंतर विषाणुजनित प्रतिक्रिया प्रकट करने वाले रोगियों के यकृत और सतही एक नाभिकीय रक्त कोशिकाओं में भी प्रतिकृति बनाने वाले सक्रिय वायरस पाए जाते हैं.[38]

रोगियों को प्रभावित करने वाले विशेष कारक[संपादित करें]

मेजबान कारक[संपादित करें]

पेगीलेटेड इंटरफेरॉन अल्फा-2ए या पेगीलेटेड इंटरफेरॉन अल्फा-2बी (ब्रांड नाम पेगासिस या पेग-इंट्रान) के साथ रिबावायरिन से इलाज किये जाने वाले जीनोटाइप 1 हेपेटाइटिस सी में देखा गया है कि मानवीय आईएल28बी (IL28B) जीन के पास आनुवंशिक बहुरूपताओं के संकेतन इंटरफेरॉन लम्बाडा 3, उपचार की प्रतिक्रिया के प्रति महत्वपूर्ण अंतर के साथ जुड़े रहे हैं. मूल प्रकृति में सूचित[39] इस खोज ने दर्शाया है कि आईएल28बी (IL28B) जीन के पास कुछ विशेष आनुवंशिक भिन्न युग्‍मविकल्‍पी युक्त जीनोटाइप 1 हेपेटाइटिस सी के रोगी उपचार के बाद निरंतर विषाणुजनित प्रतिक्रिया प्राप्त करने में दूसरों की तुलना में अधिक सक्षम होते हैं. प्रकृति[40] की रिपोर्ट ने प्रदर्शित किया है कि एक ही आनुवंशिक भिन्नता जीनोटाइप 1 हेपेटाइटिस सी वायरस की प्राकृतिक स्वीकृति के साथ भी जुडी है.
इसी प्रकार जीनोटाइप 1 या 4 के हेपेटाइटिस सी वायरस एचसीवी (HCV) द्वारा दीर्घकाल से संक्रमित मरीज, जो विषाणु प्रतिरोधक उपचार के पूरा होने के बाद एक निरंतर विषाणुजनित प्रतिक्रिया एसवीआर (SVR) हासिल नहीं कर पाते, उनमें आधारभूत उपचार पूर्व प्लाज्मा स्तर आईपी-10 IP-10 (सीएक्ससीएल-10 CXCL10 के रूप में भी जाना जाता है) उन्नत पाया जाता है.[41][42] . प्लाज्मा में आईपी-10 (IP-10) उपचार में शामिल आईपी-10 एमआरएनए (IP-10 mRNA) द्वारा प्रतिबिम्बित है और दोनों आश्चर्यजनक ढंग से सभी एचसीवी जीनोटाइपों के लिए इंटरफेरॉन/रिबावायरिन उपचार के दौरान एचसीवी (HCV) आरएनए (RNA) के शुरूआती दिनॉ के उन्मूलन ("प्रथम चरण अस्वीकृत") की भविष्यवाणी करते हैं[43].

विषाणु कारक[संपादित करें]

वायरल जीनोटाइप के इलाज में पाये जाने वाली विभिन्न प्रतिक्रियाओं के आधार पर अभी भी काम किया जा रहा है. मूल आर्गिनाइन70ग्लुटामाइन (R70Q) और नॉन स्ट्रक्टरल प्रोटीन 5ए में इनकी इंटरफेरॉन संवेदनशीलता निर्धारक क्षेत्र के अन्दर होने वाले उत्परिवर्तन को क्रमशः 12 और 4 सप्ताह में प्रतिक्रियाशीलता से संबद्ध किया गया है.[44]

गर्भावस्था और स्तनपान[संपादित करें]

यदि किसी गर्भवती महिला में हेपटाइटिस सी के खतरे की संभावना हो तो उसका एचसीवी (HCV) के खिलाफ प्रतिराक्षकों के लिए परीक्षण किया जाना चाहिए. एचसीवी (HCV) संक्रमित महिलाओं के नवजात बच्चों में तकरीबन 4% संक्रमित हो जाते हैं. ऐसा कोई इलाज नहीं है जो इसे होने से रोक दे. पहले 12 महीनों में बच्चों में एचसीवी (HCV) से छुटकारा पाने की संभावना अधिक रहती है.
एक माता जो एचआईवी से भी संक्रमित हो, उसमें संचरण की दर 19% से अधिक हो सकती है. वर्तमान में ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है जिससे पता लगाया जा सके कि विषाणु प्रतिरोधक चिकित्सा से प्रसवकालीन संचरण को कम किया जा सकता है या नहीं. गर्भावस्था के दौरान इंटरफेरॉन और रिबावायरिन प्रतिदिष्ट हैं. हालांकि, झिल्लियों के फटने के बाद खोपड़ी की खाल को घातक प्रबोधन और लंबे समय तक प्रसव पीड़ा से बचाना शिशु में संचरण के जोखिम को कम कर सकते हैं.
मां से बच्चे में संचरित एचसीवी (HCV) प्रतिरक्षक 15 महीने की उम्र तक रह सकता है. यदि शीघ्र निदान वांछित हो तो 2 से 6 महीने की उम्र के बीच एचसीवी आरएनए (HCV RNA) के लिए परीक्षण कराया जा सकता है एवं पहले परीक्षण के परिणाम के बाद स्वतंत्र रूप से दुबारा परीक्षण किया जा सकता है. अगर बाद में निदान पसंद है तो 15 महीनों की उम्र के बाद एक एचसीवी-विरोधी (anti-HCV) परीक्षण कराया जा सकता है. जन्म के समय HCV से संक्रमित अधिकांश शिशुओं में कोई लक्षण नहीं होते हैं और वे बचपन अच्छी तरह से व्यतीत करते हैं. ऐसा कोई सबूत नहीं है कि स्तनपान से एचसीवी (HCV) फैलता है. सतर्कता के लिए, एक संक्रमित मां को स्तनाग्र में दरार होने या उनसे खून बहने की स्थिति में स्तनपान नहीं कराना चाहिए.[45]

अतिरिक्त सिफारिशें और वैकल्पिक चिकित्सा[संपादित करें]

वर्तमान दिशा निर्देशों की जोरदार अनुशंसा है कि हेपेटाइटिस सी के रोगियों को, अगर वे अभी तक इन वायरस के प्रति अनावृत हों तो, हेपेटाइटिस ए और बी के लिए टीके लगाए जाने चाहिए क्योंकि एक दूसरे वायरस के संक्रमण से उनके यकृत की बीमारी और खराब हो सकती है.
नशीले पेय पदार्थों का सेवन फाइब्रोसिस और सिरोसिस से जुड़े एचसीवी (HCV) को बढ़ा सकता है और यकृत का कैंसर होने की संभावना और अधिक हो सकती है; इसी प्रकार हेपाटिक रोग का निदान इंसुलिन प्रतिरोध और उपापचयी सिंड्रोम को और खराब कर सकता है. इसके भी सबूत हैं कि धूम्रपान से फाइब्रोसिस (दाग़) की दर बढ़ जाती है.
कईवैकल्पिक चिकित्साएं वायरस के इलाज के बजाय यकृत की कार्यक्षमता को व्यवस्थित करने की ओर लक्षित हैं, जिससे जीवन की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए इस रोग की गति को धीमा किया जा सके. उदाहरण के रूप में, सिलिबम मारियानम और शो-साइको-तो (Sho-saiko-to) के सत्व को उनके एचसीवी (HCV) सम्बंधित प्रभावों के लिए बेचा जाता है, कहा जाता है कि इनमें पहला यकृत के कार्यों में कुछ सहायता करता है और दूसरा यकृत के स्वास्थ्य में सहायक है तथा विषाणु प्रतिरोधक प्रभाव उपलब्ध करता है.[46]. किसी भी वैकल्पिक चिकित्सा का कोई प्रमाण योग्य ऐतिहासिक या विषाणु विषयक लाभ प्रदर्शन कभी भी प्रदर्शित नहीं किया जा सका है.

जानपदिकरोग विज्ञान (एपिडेमियोलॉजी)[संपादित करें]

दुनिया भर में हेपेटाइटिस सी (1999, की व्याप्तता डब्ल्यूएचओ)
विकलांगता से समायोजित हेपेटाइटिस सी के लिए 100.000 निवासियों के प्रति जीवन के वर्ष. [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93]
यह अनुमान है कि दुनिया भर में लगभग 200 मिलियन लोग हेपेटाइटिस सी से संक्रमित हैं और प्रति वर्ष 3-4 लाख से अधिक लोग इससे संक्रमित होते हैं.[47][48]संयुक्त राज्य अमेरिका में एक साल में लगभग 35,000 से 185,000 नए मामले सामने आये हैं. वर्तमान में यह सिरोसिस का प्रमुख और हेपाटोसेल्यूलर कार्सिनोमा का आम कारण है. इसके फलस्वरुप यह अमेरिका में यकृत प्रत्यारोपण का प्रमुख कारण बन गया है. एचआईवी (HIV) सकारात्मक (पॉज़िटिव) आबादी में एचआईवी का सह-संक्रमण आम है और दर भी अधिक रहती है. संयुक्त राज्य अमेरिका में हर साल एचसीवी (HCV) से 10,000-20,000 मौतें होती हैं. इस मृत्यु दर में वृद्धि होने की आशंका है क्योंकि जो एचसीवी (HCV) परीक्षण के पहले आधान की वजह से संक्रमित हुए उनकी संख्या स्पष्ट हो गयी थी. कैलिफोर्निया में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार जेल के कैदियों में से 34% तक में इसकी मौजूदगी का पता चला है;[49] हेपेटाइटिस सी के निदान वाले 82% लोग पहले जेल जा चुके थे,[50] और संक्रमण का समय जेल में रहने के दौरान वर्णित है.[51]
अफ्रीका और एशिया के कुछ देशों में अधिक व्यापकता है.[52] मिस्र में एचसीवी (HCV) की व्यापकता उच्चतम, कुछ क्षेत्रों में 20% तक है. यह अवधारणा है कि सिसटोसोमियासिस के लिए अब समूह इलाज का प्रचार बंद हो जाने की वजह से ही यह बीमारी फैल रही है जो उस देश में स्थानिक है.[53] यह महामारी चाहे जैसे भी शुरू हुई हो, मिस्र में इयाट्रोजेनिकली और समुदाय और परिवार के भीतर दोनों ही तरह से एचसीवी (HCV) का उच्च दर पर संचरण जारी है.

एचआईवी के साथ सह-संक्रमण[संपादित करें]

संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 350,000 या 35% मरीज जो एचआईवी से संक्रमित हैं, वे हेपेटाइटिस सी वायरस से भी संक्रमित हैं. इसकी मुख्य वजह यह है कि दोनों ही वायरस रक्त जनित हैं और एक जैसी आबादी में मौजूद रहते हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका में एचसीवी (HCV) दीर्घकालीन जिगर की बीमारी का मुख्य कारण है. नैदानिक अध्ययन से स्पष्ट हो गया है कि एचआईवी संक्रमण बहुत तेजी से दीर्घकालीन हेपेटाइटिस सी से लेकर सिरोसिस और यकृत विफलता का कारण बनता जा रहा है. यह नहीं कहा जा सकता कि उपचार सह-संक्रमण के साथ रहने वाले लोगों के लिए एक विकल्प नहीं है.
21 एचआईवी सह-संक्रमित रोगियों (डाइको)(DICO)[54] पर किये गए एक अध्ययन में आईपी-10 के उपचार पूर्व आधारभूत प्लाज्मा स्तर ने एचसीवी (HCV) जीनोटाइप 1-3[55] के लिए इंटरफेरॉन/रिबावायरिन उपचार ("पहले चरण के गिरावट") के आरंभिक दिनों के दौरान एचसीवी आरएनए (HCV RNA) में गिरावट की भविष्यवाणी की, जैसा कि एचसीवी (HCV) मोनो-संक्रमित रोगियों के मामले में भी होता है.[41][42][43] चिकित्सा पूर्व 150 पीजी/मिली (Pg/ml). से नीचे का आईपी-10 (IP-10) स्तर एक अनुकूल प्रतिक्रिया का संकेत करता है और इस तरह यह अन्य प्रकार से इलाज आरंभ करने में परेशानी वाले रोगियों को उत्साहित करने में उपयोगी हो सकता है[55].

इतिहास[संपादित करें]

1970 के दशक के मध्य में, नैशनल इन्स्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ (National Institutes of Health) के रक्त आधान विभाग में संक्रामक रोग विभाग के प्रमुख हार्वे जे. आल्टर और उनके अनुसन्धान समूह ने अपने शोध से यह साबित किया कि आधान के बाद के अधिकतर हेपेटाइटिस मामले हेपेटाइटिस ए या बी वायरसों की वजह से नहीं होते थे. इस खोज के बावजूद, अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान प्रयासों द्वारा शुरुआत में गैर-ए, गैर-बी हेपेटाइटिस एनएएऩबीएच (NANBH) कहे जा रहे वायरस को पहचानने की कोशिश अगली सदी के लिए नाकाम रही. 1987 में, माइकल हफटन, क्वि-लिम चू और जॉर्ज क्वो ने चिरॉन कार्पोरेशन में सीडीसी (CDC) के डॉ डी.डब्ल्यू.ब्राडली के साथ मिलकर अज्ञात जीव को पहचानने के लिए आण्विक क्लोनिंग का उपयोग किया.[56] 1988 में, आल्टर ने एऩएएनबीएच (NANBH) के नमूनों के पैनल में इसकी मौजूदगी को देखते हुए इस वायरस के होने की पुष्टि की. 1989 के अप्रैल में इस वायरस की खोज के बाद इसका नया नाम हेपेटाइटिस सी वायरस, एचसीवी (HCV)साइंस के जर्नल में दो लेखों में प्रकाशित हुआ था.[57][58]
चिरॉन ने वायरस और उसके निदान पर कई पेटेंट दायर किये.[59] सीडीसी द्वारा दायर प्रतिस्पर्धी पेटेंट आवेदन को 1990 में उस समय ख़ारिज कर दिया गया जब चिरॉन ने सीडीसी को 1.9 करोड़ डॉलर और ब्राडली को 337,500 डॉलर का भुगतान किया. 1994 में ब्राडली ने पेटेंट रद्द करने के लिए चिरॉन पर मुकदमा दायर कर दिया, जिसने खुद को सह-आविष्कारक के रूप में शामिल किया और नुकसान के साथ रॉयल्टी की आय प्राप्त करते हैं. अदालत में हारने के बाद 1998 में उसने मामला वापस ले लिया.[60][61]
2000 में डा. ऑल्टर और हफटन को नैदानिक चिकित्सा अनुसंधान के लिए लास्कर अवार्ड से सम्मानित किया गया, "हेपेटाइटिस सी जैसी बीमारी फैलाने वाले वायरस की खोज करने जैसा अग्रणी काम और स्क्रीनिंग के तरीकों में विकास किया, जिसकी वजह से अमेरिका में जहां 1970 में रक्त के आधान की वजह से होने वाले हेपेटाइटिस के 30% मामले 2000 में घटकर सीधे शून्य तक पहुंच गये."[62]
2004 में चिरॉन के पास 20 देशों में हेपेटाइटिस सी से जुड़े 100 पेटेंट थे और उन्होंने उल्लंघन करने पर कई कंपनियों के खिलाफ मामले दायर कर सफलता हासिल की थी. वैज्ञानिकों और प्रतियोगियों ने शिकायत दर्ज की है कि कंपनियां अपनी प्रौद्योगिकी के लिए बहुत अधिक पैसों की मांग करके हेपेटाइटिस सी के खिलाफ लड़ाई में अड़चनें डाल रही हैं.[60]

अनुसंधान[संपादित करें]

रीबावायरिन की जगह वीरामिडाइन एक वैकल्पिक दवा है, जिससे यकृत को फायदा पहुंचता है और निर्धारित खुराक दिये जाने पर हेपेटाइटिस सी के खिलाफ अधिक प्रभावी हो सकती है, यह अभी प्रयोगात्मक परीक्षण के III चरण में है. इसका प्रयोग इंटरफेरॉन के साथ संयोजन में किया जायेगा, जैसा रीबावायरिन के लिए किया जाता था.[disambiguation needed] हालांकि, इस दवा के रीबावायरिन के प्रतिरोधी उपभेदों में प्रभावी होने की उम्मीद नहीं है, जो पहले ही संक्रमण के समय रीबावायरिन/इंटरफेरॉन उपचार में काम नहीं आया और असफल रही.
कुछ नयी दवाओं का विकास हो रहा है जैसे द प्रोटीज़ इनहिबिटर्स (जिनमें टेलाप्रेवीर/वीएक्स (VX) 950 शामिल है) एन्ट्री इन्हीबिटर्स (जैसे कि एसपी 30 (SP 30) और आईटीएक्स 5061[63] (ITX 5061)) तथा पोलिमिरेज़ इन्हीबिटर्स (जैसे कि आरजी7128 (RG7128), पीएसआई-7977 (PSI-7977) और एनएम 283 (NM 283)), लेकिन इनमें से कुछ का विकास अपने प्रारंभिक चरणों में हैं. वीएक्स वीएक्स 950 (VX 950) जो टेलाप्रेवीर[64] के नाम से भी जाना जाता है, फिलहाल अपने परीक्षण के तीसरे चरण में है.[65][66] एक प्रोटीज़ इन्हीबिटर बीआईएलएन 2061 (BILN 2061) को नैदानिक परीक्षण के आरम्भ में सुरक्षा कारणों से बंद करना पड़ा था. एचसीवी (HCV) के उपचार में मदद करने वाली कुछ अधिक आधुनिक नयी दवाओं के नाम हैं अलबुफेरोन[67] और जडाक्सिन[68]. हेपेटाइटिस सी के लिए एनटीसेन्स फॉस्फोरोथिओट ओलिगोस को लक्षित किया गया है.[69] एनटीसेन्स मोरफोलिनो ओलिगोस ने पूर्व नैदानिक अध्ययन[70] में सम्भावना प्रकट की है, हालांकि, इन्हें विषाणु जनित भार को सीमित करने में कमी आयी थी.
हेपेटाइटिस सी वायरस के खिलाफ इम्यूनोग्लोबुलिन्स मौजूद हैं और इसके नए प्रकार पर काम चल रहा है. अभी तक उनकी भूमिका स्पष्ट नहीं हो पायी है क्योंकि अभी तक वे दीर्घकालिक संक्रमण को खत्म करने या तेजी के साथ उसकी रोकथाम में कोई भूमिका नहीं निभा पाये हैं (उदाहरण के लिए सुइयां). जिन मरीजों का प्रत्यारोपण हुआ है, उन मामलों में उनकी सीमित भूमिका है.
कुछ अध्ययनों में बताया गया है कि इंटरफेरॉन और रिबावायरिन द्वारा मानक उपचार के साथ ही जब विषाणु प्रतिरोधक दवा एमांटाडाइन (सीमेट्रेल) भी दिया जाता है, तब अधिक सफलता मिलती है. कभी कभी इसे "ट्रिपल थेरपी" भी कहते हैं. इसमें दिन में दो बार 100 मिलीग्राम एमांटाडाइन की खुराक शामिल होती है. अध्ययनों से पता चलता है कि यह "प्रतिक्रिया न देने वाले" मरीजों के लिए विशेष तौर पर उपयोगी साबित हो सकता है, जिन्हें पहले सिर्फ इंटरफेरॉन और रिबावायरिन के इलाज से कोई फायदा नहीं पहुंचा था.0/} वर्तमान में हेपटाइटिस सी के इलाज के लिए अमांटडीन अनुमोदित नहीं है. अब अध्ययनों से यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि यकृत खराब होने की स्थिति में कब इससे मरीज को फायदा पहुंच सकता है और कब नुकसान हो सकता है.

बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

सांप्रदायिक हिंसा 2014.गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना,कर्नाटक व असम

Posted: 24 Feb 2015 08:21 AM PST
गुजरात
गुजरात में 2014 में 59 सांप्रदायिक घटनाएं हुईं, जिनमें 8 लोग मारे गये और 372 घायल हुए। मई में नरेन्द्र मोदी की आमचुनाव में बड़ोदा से विजय के बाद, अनेक नेताओं द्वारा भड़काऊ वक्तव्य दिये जा रहे थे। इन लोगों के खिलाफ राज्य सरकार द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की जा रही थी। बड़ोदा में उपचुनाव होने थे क्योंकि नरेंद्र मोदी ने इस लोकसभा क्षेत्र से इस्तीफा देकर, वाराणसी का सांसद बने रहने का निर्णय किया था। उपचुनाव में भारी अंतर से जीत सुनिश्चित करने के लिए सांप्रदायिकता की आग को जलाए रखना आवश्यक था। सितंबर में विहिप नेताओं ने यह कहना शुरू किया कि गरबा में मुसलमान युवकों का स्वागत नहीं है। उन्होंने कहा कि गरबे में आने वाले मुस्लिम युवक, हिंदू लड़कियों को अपने प्रेम जाल में फंसा लेते हैं। ये नेता इसे लव जिहाद बताते थे। भडूच जिले के विहिप अध्यक्ष विरल देसाई ने यह घोषणा की कि मुसलमानों के धार्मिक स्थलों पर गरबे का आयोजन किया जायेगा। 
विहिप व बजरंगदल के नेताओं द्वारा बिना किसी आधार, के बार.बार मुसलमानों पर यह आरोप लगाने से कि वे गोवध कर रहे हैं, मुस्लिम समुदाय के खिलाफ वातावरण बन गया। विहिप ने अहमदाबाद के सांप्रदायिक दृष्टि से संवेदनशील दरियापुर इलाके में गोवध के खिलाफ प्रदर्शन किया। दंगों से प्रभावित लोगों ने आरोप लगाया कि विहिप और पुलिसकर्मियों के बीच की सांठगांट से हिंसा भड़की। पुलिसकर्मी, विहिप से जुड़े 'गोरक्षकों' को समय.समय पर सूचनाएं देते रहते थे, जिनके आधार पर झूठे आरोप लगाकर निर्दोष मुसलमानों के खिलाफ मनमानी और गैर.कानूनी कार्यवाहियां की जाती थीं। पुलिसकर्मियों और विहिप कार्यकर्ताओं ने नवसारी जिले के मुस्लिम.बहुल ढाबेल गांव में छापा मारा और गोमांस बेचने के आरोप में कुछ लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। अकेले अहमदाबाद शहर में 62'गोरक्षक दल' थे, जिनमें से हर एक के चार.पांच सदस्य थे। ये लोग शहर के प्रवेश बिंदुओं पर डेरा जमा लेते थे और पुलिस के साथ समन्वय कर अपनी बेजा कार्यवाहियों को अंजाम देते थे।
25 मई को दो हिंसक गुटों के बीच पत्थरबाजी हुई,जिसके बाद कई दुकानों और वाहनों में आग लगा दी गई। इस हिंसा में चार लोग घायल हुए। हिंसा की शुरूआत तब हुई जब एक बारात निकलने के दौरान, दो अलग.अलग समुदायों के सदस्यों की कारों में भिडंत हो गई।
बड़ोदा में 25 से 30 सितंबर तक सांप्रदायिक हिंसा हुई। हिंसा की शुरूआत तब हुई जब एक निजी ट्यूशन क्लास के हिंदू मालिक ने एक मुस्लिम पवित्र स्थल का अपमान करते हुए एक फोटो, सोशल नेटवर्किंग साईट पर अपलोड कर दी। क्लास के मुस्लिम विद्यार्थियों ने पुलिस कमिश्नर से इसकी शिकायत की। जब वे शिकायत कर लौट रहे थे तब एक छोटी सी घटना के बाद उनमें और कुछ वकीलों में विवाद हो गया, जो जल्दी ही हिंसा में बदल गया। हिंसा, फतेहपुरा और हाथीखाना इलाकों में फैल गई। पंजरीगर मोहल्ले में ट्यूशन क्लास की इमारत में तोड़फोड़ की गई और दोनों समुदायों की ओर से पत्थरबाजी हुई। वाहनों को जला दिया गया और दुकानों को लूटा गया। 26 सितंबर को हिंसा और भड़क उठी और एक मुस्लिम को चाकू मारकर घायल कर दिया गया। दस अन्य लोग भी घायल हुए।
26 नवंबर को सोमनाथ में शिव पुलिस चौकी के नजदीक, लगभग 8रू30 बजे, हिंसा की शुरूआत हुई। झगड़ा दस रूपए के एक नोट को लेकर प्रारंभ हुआ, जिस पर एक मुसलमान और एक कोली दोनों अपना दावा जता रहे थे। बहसबाजी के बाद हाथापाई शुरू हो गई और मुसलमान युवक के सिर पर किसी ने एक टिफिन बॉक्स दे मारा। इससे उसे चोट आई और उसके सिर से खून बहने लगा। दोनों समुदायों के बुजुर्गों ने हस्तक्षेप किया और लड़ने वालों को अलग.अलग कर अपने.अपने घर भेज दिया। इसके करीब आधा घंटे बादए शांतिनगर के कोली इकट्ठा हो गये और सड़क के उस पार बनी मुस्लिम बस्ती पर पत्थर फेंकने लगे। सड़क पर खड़ी कुछ मोटरसाइकिलों को भी जला दिया गया।
महाराष्ट्र
    महाराष्ट्र में सन् 2014 में साप्रदायिक हिंसा की 82 घटनाएं हुईं, जिनमें 12 लोग मारे गये और 165 घायल हुए। सन् 2014 में महाराष्ट्रए सांप्रदायिक घटनाओं के मामले में उत्तरप्रदेश के बाद दूसरे नंबर पर रहा। अक्टूबर तक वहां कांग्रेस का शासन था और विधानसभा चुनाव के बाद, राज्य में भाजपा ने अपनी सरकार बनाई। घटनाएं छोटी.छोटी थीं परंतु राज्य का कोई क्षेत्र इनसे अछूता नहीं रहा। मुख्यतः यह हिंसा पश्चिमी महाराष्ट्र में केंद्रित थी। सन् 2014 में राज्य में लोकसभा व विधानसभा दोनों ही चुनाव होने थे। एनडीए व यूपीए और यूपीए के अंदर कांग्रेस व एनसीपी के बीच मराठा मतों के लिए धमासान मचा हुआ था। मराठा,महाराष्ट्र की आबादी का लगभग 50 प्रतिशत हैं। यूपीए के समर्थक मुख्यतः मराठा, मुसलमान और महार थे। एनडीए ने ओबीसी व महारों के एक तबके को अपने पक्ष में कर लिया था और वह मराठाओं को अपने साथ लेने के लिए आक्रामक अभियान चला रही थी। मराठाओं को कांग्रेस से तोड़कर भाजपा के साथ लाने के लिए सांप्रदायिकता का खुलकर इस्तेमाल किया गया। कांग्रेस ने इस घोर सांप्रदायिक अभियान का विरोध इसलिए नहीं किया क्योंकि उसे यह डर था कि इससे उसकी छवि मुस्लिम.समर्थक की बन जायेगी व वह हिंदुओं के वोट खो देगी। पार्टी की सरकार ने उन हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जो मुसलमानों के विरूद्ध जहर उगल रहे थे और छोटे स्तर पर हिंसा भी भड़का रहे थे।
    पुणे में मई की 31 तारीख को धनंजय देसाई नामक व्यक्ति के नेतृत्व में हिंदू राष्ट्र सेना के कार्यकर्ताओं ने बसों में तोड़फोड़ और आग लगानी शुरू कर दी। हिंसा पर उतारू इस भीड़ ने दुकानों और मकानों पर पत्थर फेंके और कई दुकानों को लूटकर उनमें आग लगा दी। पुणे और उसके आसपास स्थित मुसलमानों के धार्मिक स्थलों को भी निशाना बनाया गया। शहर के हुंडेवाणी इलाके में दो मदरसों और दो मस्जिदों पर हमला हुआ। आरोप यह था कि बालठाकरे और शिवाजी को अपमानित करते हुए फेसबुक पर एक पोस्ट किया गया है। लगभग 250 सरकारी बसों को नुकसान पहुंचा। नेशनल कान्फिडेरेशन ऑफ हृयूमन राईट्स आर्गेनाईजेशंस की एक रपट के अनुसार,  फेसबुक पोस्ट और उसके बाद हुए दंगे.दोनों ही पूर्वनियोजित थे। लोनी में इस हिंदुत्व संगठन के 35 हथियारबंद गुंडों ने, जो मोटरसाइकिलों पर सवार थे, रोज बेकरी, बैंग्लोर बेकरी और महाराष्ट्र बेकरी में तोड़फोड़ की। इन तीनों के मालिक मुसलमान थे। रोज बेकरी से 35,000 रूपए नगद लूट लिए गये।
    पुलिस ने हमलावरों के विरूद्ध कड़ी कार्यवाही नहीं की और नतीजे में दो जून को उन्होंने और बड़ा हमला किया। काले पड़ेल, सैय्यद नगर व हादपसर बाजार में कई बेकरियों, दुकानों और होटलों में तोड़फोड की गई और उनमें आग लगा दी गई। बिस्कुट, केक आदि बनाने वाली मशीनों, फ्रीजरोंए टेम्पों,कारों और साईकिलों को टुकड़े.टुकड़े कर जला दिया गया। होटल सहारा के पास स्थित दलित बौद्धों के मकानों पर भी हमला किया गया। नीला बड़ूकोंबे और मारूथी शिंदेबाबा,जो कि दलित हैं, ने कहा कि वे लगभग 50 सालों से उस इलाके में रह रहे हैं और पहली बार उन पर हमला हुआ है। कस्बापेठ में चार हिंदू राष्ट्रवादी कार्यकर्ता, मुसलमान युवकों से हिंसक मुठभेड़ में घायल हो गये। ये लोग एक मस्जिद पर हमला करने आये थे और मुसलमान युवकों ने उनका विरोध किया। इस सिलसिले में छः मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार किया गया। हादपसर बाजार क्षेत्र में स्थित नलबंद मस्जिद पर पत्थर फेंके गये। अब्दुल कबीर की फलों की दुकान और अब्दुल रफीक बागवान के केले के गोदाम में आग लगा दी गई। उरूली देवाची में जामा मस्जिद पर हमला हुआ। एक फ्रिजए पानी की टंकी और कुछ अन्य चीजें तोड़ दी गईं। ये सभी हमले 9 से 11 बजे रात के बीच हुए। रात लगभग 9 बजे, 28 वर्षीय मोहसिन शेख नामक युवक, जो शोलापुर का रहने वाला था और आईटी इंजीनियर था, को पीट.पीटकर मार डाला गया। मोहसिन का एक मित्र, जो उसके साथ था, बच गया परंतु मोहसिन, जो कि अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला सदस्य था, की एक अस्पताल में मौत हो गई। दो अन्य मुस्लिम युवक एजाज़ यूसुफ बागवान और अमीर शेख,जो कि वहां मौजूद थे, भी घायल हुए। पुणे के मुसलमान व्यापारियों और दुकानदारों को कुल मिलाकर लगभग 4.5 करोड़ रूपयों का नुकसान हुआ।
तेलंगाना
    हैदराबाद के किशनगंज के सिक्ख छावनी क्षेत्र में 14 मई को सिक्खों के एक धार्मिक झंडे को कुछ अज्ञात लोगों ने जला दिया। इसके बाद लाठियों और तलवारों से लैस सिक्खों ने मुसलमानों के घरों पर हमला किया। यह दूसरी बार था जब झंडे को जलाने के मुद्दे को लेकर हिंसा भड़की और सिक्खों ने मुसलमानों पर हमला किया। तीन मुसलमान मारे गये, जिनमें से दो छुरेबाजी और एक पुलिस की गोली से मारा गया। किशनबाग में लंबे अरसे से हिंदू, मुसलमान और सिक्ख मिलजुलकर, शांतिपूर्ण ढंग से रहते आये थे।
कर्नाटक
    कर्नाटक में कुल मिलाकर 68 सांप्रदायिक घटनाएं हुईंए जिनमें 6 लोग मारे गये और 151 घायल हुए। बीजापुर में नरेंद्र मोदी के शपथ लेने का जश्न मनाने के लिए 26 मई को पूर्व केंद्रीय मंत्री बासवन्ना गौड़ा पाटिल के नेतृत्व में जुलूस निकाला जा रहा था। इसके दौरान हुई हिंसा में 12 लोग घायल हुए। कई लोगों को उनकी इच्छा के विरूद्ध गुलाल लगा दिया गया। इसके बाद हुए विवाद में कई दुकानों और फुटपाथ पर धंधा करने वालों पर हमले हुए। लगभग एक लाख रूपये की संपत्ति नष्ट हो गई और 15 व्यक्ति घायल हुए।
असम 
    नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड ;एनडीएफबी के सोनवीजीत धड़े ने पिछले साल लगभग 100 लोगों की हत्यायें कीं, जिनमें बांग्लाभाषी मुसलमान और आदिवासी शामिल थे। केंद्र व राज्य सरकारों ने इस हथियारबंद सेना को खत्म करने के लिए समुचित प्रयास नहीं किए हैं।
    दो मई को नारायण गुरी, बकसा में 72 में से 70 मकानों में आग लगा दी गई। कुल मिलाकर 48 लोग मारे गये और 10 लापता हैं। कुछ लोग अपनी जान बचाने के लिए बैकी नदी में कूद गये। उनके बच्चे नदी में बह गये और उनमें से कई को गोली मार दी गई। इस हमले में जिंदा बचे लोगों के अनुसार यह जनसंहार बोडो लिबरेशन टाईगर्स के पूर्व सदस्यों ने अंजाम दिया था। बोडो टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट में इन लोगों को वनरक्षक नियुक्त किया गया है। इन्हें सरकारी तौर पर बंदूकें उपलब्ध कराई गईं हैं, जिनका इस्तेमाल इस हमले में किया गया। इस हमले के पीछे बोडो टेरिटोरियल कांउसिल के उपप्रमुख खंपा बोरगोयारी का हाथ बताया जाता है जो कि बोडो टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट के वन विभाग के प्रभारी हैं। यह जनसंहार गैर.बोडो रहवासियों को सबक सिखाने के लिए किया गया था क्योंकि उन्होंने अत्याचारी प्रशासन के खिलाफ मत दिया था।
    इस हमले का कारण बना बोडो पीपुल्स फ्रंट के विधायक व असम के पूर्व कृषि मंत्री प्रमिला रानी ब्रम्ह का यह बयान कि मुसलमानों ने 16वीं लोकसभा के चुनाव में बोडो पीपुल्स फ्रंट के उम्मीदवार को वोट नहीं दिये। इसके पहले, हरभंगा मतदान केंद्र पर मतदान के दौरान हुई हिंसा के बाद पुलिस द्वारा मुसलमानों के खिलाफ की गई क्रूरतापूर्ण कार्यवाही से हमलावरों को प्रोत्साहन मिला। जब चुनाव के नतीजे घोषित हुए तो पता चला कि गैर.बोडो मतों के कारण, 'सम्मिलित जनगोष्ठिया एक्यामंच' के नाभा उर्फ हीरा सरानिया ने प्रमिला रानी ब्रम्ह को बड़े अंतर से पराजित किया।
    इसके बाद, 23 दिसंबर को एनडीएफबी के सोनवीजीत धड़े के कार्यकर्ताओं ने अंधाधुंध गोलियां चलाकर 78 लोगों की जाने ले लीं। कुल मिलाकर 46 लोग सोनितपुर में मारे गये, 29 कोकराझार में और तीन चिरांग जिले में। आदिवासियों द्वारा जवाबी हमले में चार बोडो भी मारे गये। इस अंधाधुंध गोलीबारी में मारे जाने वालों में से अधिकांश ईसाई आदिवासी थे। उन पर हमला राज्य सरकार द्वारा इस हथियारबंद गिरोह के खिलाफ की गई कार्यवाही का बदला लेने के लिए किया गया।
    कोकराझार जिले के गुंसाई क्षेत्र के माणिकपुर और दीमापुर गांव में आदिवासियों ने कर्फ्यू के दौरान बदले की कार्यवाही करते हुए बोडो निवासियों के कई घरों में आग लगा दी। पुलिस द्वारा हमलावरों को तितरबितर करने के लिए गोली चलाईं गईं जिसमें तीन आदिवासी मारे गये। इनको मिलाकर, सोनितपुर जिले में हिंसा में मारे गये लोगों की संख्या 46 हो गई।
-इरफान इंजीनियर
 

बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

Economic survey highlights: 2014-15 GDP growth at 5.4%-5.9% | Latest News

Economic survey highlights: 2014-15 GDP growth at 5.4%-5.9% | Latest News

Finance minister Arun Jaitley on Wednesday showcased the pre-budget Economic Survey in the Lok Sabha. As per the Economic Survey, the GDP growth for 2014-15 was pegged at 5.4 to 5.9%.
Passage of PFRDA Act, shift of commodity futures trading into the finance ministry and the presentation of the FSLRC report were the three major milestones of 2013-14.
* FSLRC, in its report, has given wide-ranging recommendations, broadly in the nature of governance enhancing principles for enhanced consumer protection, greater transparency in the functioning of financial sector regulators in terms of their reporting system, greater clarity on their interface with the regulated entities and greater transparency in the regulation making process by means of mandatory public consultations and incorporation of cost benefit analysis, among others
* Gross NPAs of banks registered a sharp increase. Overall NPAs of the banking sector increased from 2.36 percent of credit advanced in March 2011 to 4.40 percent of credit advanced in December 2013.
RBI has identified infrastructure, iron and steel, textiles, aviation and mining as stressed sectors
* New Pension System (NPS), now National Pension System, represents a major reform of Indian pension arrangements, and lays the foundation for a sustainable solution to ageing in India by shifting to an individual account, defined-contribution system.
* Till May 7, 2014 67.11 lakh members have been enrolled under the NPS with a corpus of Rs. 51,147 crore
* Swavalamban Scheme for workers in the unorganized sector launched in 2010, extended to five years for the beneficiaries enrolled in 2010-11, 2011-12, and 2012-13; benefits of co-contribution would be available till 2016-17.
* Long-term external debt accounts for 78.2 percent of total external debt at end-December 2013 against 76.1 percent at end-March 2013. Long-term debt at end-December 2013 increased by $25.1 billion (8.1 percent) over the level at end-March 2013 while short-term debt declined by $4 billion (4.1 percent), reflecting a fall in imports
* Wholesale Price Index inflation fell to three-year low of 5.98 percent during 2013-14
* Consumer Price Inflation also showed signs of moderation
* Both Wholesale and Consumer Price Inflation expected to go downward
* Fiscal consolidations remains imperative for the economy
* Fiscal consolidation recommended through higher tax-GDP ratio then merely reducing the expenditure-GDP ratio
* Proactive policy action helped government remain in fiscal consolidation mode in 2013-14
* Fiscal deficit for 2013-14 contained at 4.5 percent of GDP
* Total outstanding liabilities of the central and state governments decline as a proportion of GDP
* India’s balance-of-payments position improved dramatically in 2013-14 with the current account deficit (CAD) at $32.4 billion (1.7 percent of GDP) as against $88.2 billion (4.7 percent of GDP) in 2012-13
* The annual average exchange rate of the rupee went up from 47.92 per dollar in 2011-12 to Rs.54.41 per dollar in 2012-13 and further to Rs.60.50 per dollar in 2013-14
* India’s foreign exchange reserves increased from $292 billion at end March 2013 to $304.2 billion at end March, 2014