बुधवार, 9 जुलाई 2014

Boss घर की रानी

Boss घर की रानी 
मान कर खुद को ;रानी कर रही थी राज
पति बच्चे छोटा सा परिवार
घर की चार दीवारों को मान बैठी संसार
हँसता खेलता भरा पूरा परिवार
परिवार की ख़ुशी में मेरी ख़ुशी थी
कठिन थी राहें फिर भी मुस्करा रही थी
रानी थी पर !करती थी हर काम
मुश्किल था; या आसान
दूध सी काया मुरझा रही थी
पर जीवन के अनुभवों से कंाति-
चेहरे की बढ़ा रही थी
रेलगाड़ी जीवन की कभी धीमी चली
कभी थमी फिर आगे बड़ती चली
जहाज की कप्तान बनी इतरा रही थी
मान कर कप्तान मुश्किलें अपनी बढ़ा रही थी
छोटे से छोटे छेक को कोशिशों से दबा रही थी
जीवन आगे बढ़ा बढ़ता गया
पर उम्र में डहराव आता गया
आवाज़ की कोमलता हो गई कठोर
हँसी तो जैसे चुरा ले गए वक्त के चोर!
लोक संघर्ष जून 2014 








इशारों को समझ छिड़क कर जान
दो शब्द प्यार के बुझा देते थे प्यास
छोटा सा आँचल ,छोटा सा संसार
बिन बोले ही पढ़ कर मन की बात
आँखों में ही बीत जाती थी रात
दिन बदल गए; रातें सिमट गई
मन की कुछ बातें मन में ही रह गई 
ज्यादा बीत गई जिंदगी थोड़ी रह गई

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